कविता

मन दर्पण सजा देते

काले घने बादलों से आच्छादित
मेघों से घिरे आसमान से गिरती
रिमझिम फुहार से धरती गोद में
अंकुर के प्रस्फुटित होते ही
नवजीवन की आस लिए
जड़े आकार लेने लगती है
तना शाखाओं को संभाले हुए
डालियाँ कोमल पत्तियाँ को धारण किये
एक वृक्ष बड़ा होने लगता है
नई डालियों पर नई पत्तियां
नव योवना सा उल्लास लिए
ऊंचाई की और जब अग्रसर होती है
नव पल्लव पर गिरती बूंदें ऐसे जैसे
मानों हजारों मृदंग बाजती हुई
आकाश तक गुंजित होती रागिनी
बरखा के साथ खुशी से झूमते हुए
तरोताजा फूल और धुले धुले पत्ते
जब प्रफुल्लित हो रहे होते हैं
मेरे उर अंतर में धीरे-धीरे उतरकर
मेरे मन के दर्पण को सजा देते हैं

— अर्विना

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 [email protected] प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु