मन दर्पण सजा देते
काले घने बादलों से आच्छादित
मेघों से घिरे आसमान से गिरती
रिमझिम फुहार से धरती गोद में
अंकुर के प्रस्फुटित होते ही
नवजीवन की आस लिए
जड़े आकार लेने लगती है
तना शाखाओं को संभाले हुए
डालियाँ कोमल पत्तियाँ को धारण किये
एक वृक्ष बड़ा होने लगता है
नई डालियों पर नई पत्तियां
नव योवना सा उल्लास लिए
ऊंचाई की और जब अग्रसर होती है
नव पल्लव पर गिरती बूंदें ऐसे जैसे
मानों हजारों मृदंग बाजती हुई
आकाश तक गुंजित होती रागिनी
बरखा के साथ खुशी से झूमते हुए
तरोताजा फूल और धुले धुले पत्ते
जब प्रफुल्लित हो रहे होते हैं
मेरे उर अंतर में धीरे-धीरे उतरकर
मेरे मन के दर्पण को सजा देते हैं
— अर्विना