लघुकथा

मैं लक्ष्मी नहीं दुर्गा हूँ

“ सब पता है, अपनी पीड़ा छुपाने के लिए तुम इस तरह घुटनों में मुँह छिपाकर बैठी हो। तुम्हारी पल-पल की वेदना का भान है मुझे। मैं गर्भ में जितनी सुरक्षित हूँ, दुनिया में उतनी महफूज नहीं रह पाऊँगी। यही सोच-सोचकर तुम व्यथित हो रही हो..न….? बताओ माँ …?
प्रसव कक्ष के बेड पर बैठी शकुंतला के पेट में हलचल मच गयी। उसने अपने गर्भ को सहला कर कहा,
“हाँ… यह मानसिक पीड़ा, प्रसव पीड़ा से भी बहुत अधिक टीस दे रही है मुझे ! दुनिया बहुत जालिम है, गिद्ध की नजरों से कोई लड़की अछूती नहीं रह पाती ! उसी गिद्ध ने मुझ कुंवारी को एक दिन अपना शिकार बनाया था ! उसके घिनौने हाथों ने मेरे जिस्म को नोचा-खंसोटा…। लेकिन ,मैं लाचार, बुत बन सब देखती, सहती रही !उस दरिंदे को कुछ न कर सकी ! इसलिए मेरा अवसाद ग्रस्त मन, बिना अपराध किये अपराधबोध से आज भी जकड़ा हुआ है !
पर, गर्भ में बेटी होने का जैसे ही पता चला, मुझे तुमसे बेहद प्यार हो गया। तुम्हारे वजूद की कल्पना में मैं सदैव डूबी रही। मैंने लोक लाज त्याग कर गर्भ में तुम्हें सुरक्षित रखा और न महिनों तक वीरता की कहानी सुनाती रही। ताकि तुम वीरांगना की तरह उन दरिंदो को मुँह तोड़ जवाब दे सको …जब कोई तुम पर गिद्ध दृष्टि डालेगा।
सुनो, इसलिए मैंने तुम्हारा नाम .. ‘दुर्गा’ सोचा है ! दस भुजाओं वाली दुर्गा … आह ….उच….ओह….आ.. आऽऽऽऽऽऽऽह….।”
माँ की प्रसव वेदना एकाएक तेज हो गई।
तभी …. ” वान्न्न्न….ऊं.. ….वान्न्न…।” मध्य रात्रि में नवजात के रोने की आवाज प्रसव कक्ष में गूँज उठी।
“लक्ष्मी आयी है…।” नर्स ने मुझे माँ के गोद में देकर हँसते हुए कहा।
“लक्ष्मी…हाहाहाहा …। इसलिए लोग ललचायी नजरों से बेटी जात को जन्मते ही घूरने लगते हैं। मैं लक्ष्मी… नईईईई…… मैं अपनी माँ की दुर्गा हूँ..।” मैं जोर जोर से चिल्लाकर शोर मचाने लगी , मतलब क्रंदन करने लगी।
“ वाह! रुई के फाओं से भी तुम नर्म हो !”
गोद में मुझे लेते ही माँ पुलकित हो गई और झट अपने स्तन से लगाया..।उनके स्तन से बूंद-बूंद कर रिस रहे गाढ़े पीले दूध, अमृत समान मेरे ओठों से कंठ तक आ पहुँचा। मैं अपनी मिचमिचाते नयनों से माँ के चेहरे को पढने लगी। वो तृप्त भाव से अपलक मुझे निहार रही थीं। मानो कह रही थीं , “बेटी, तुम्हें देख कर आज मैं अवसाद रूपी जकड़न से आजाद हो गई। ”
“हाँ….माँ ! मैं… तुम्हारी दुर्गा हूँ। वही दस भुजाओं वाली वीरांगना। ” नवजात का चेहरा अरुणोदय की लालिमा की तरह दैदीप्यमान लग रहा था। जिसे देख संघर्ष से थकी-हारी माँ की आँखें अब झपकने लगीं।

— मिन्नी मिश्रा

मिन्नी मिश्रा

गृहणी शिक्षा --- स्नातकोत्तर विधा-स्वतंत्र लेखन प्रकाशित रचनाएं- दृष्टि , किस्सा कोतहा ,लघुकथा कलश , अट्टहास,चंद्रहास कहानियाँ,चुनिंदा लघुकथाएँ, साहित्य कलश ,कलमकार मंच, क्षितिजऔर संगिनी, मधुरिमा, अहा! ज़िंदगी, हंस, सुरभि, लोकचिंतन ,अविराम साहित्यिकी,लघुकथा काॅम,अक्षरा, समाज्ञा, हिन्दुस्तान, सलाम दुनिया , आदि कई पेपर व पत्रिकाओं में | सम्मान--- लघुकथा लेखन में ... लघुकथा श्री सम्मान, कलमकार मंच ,भाषा सहोदरी , लघुकथा स्टोरी मिरर प्रतियोगिता , साहित्य विचार प्रतियोगिता आदि से सम्मानित किया जा चुका है | कोई पुस्तक अभी प्रकाशित नहीं हुई है । मेरा पता-- Minni Mishra shivmatri apartment, flat no.- 301, Road number---3, maheshnagar, Patna Pin--- 800024 मोबाइल नंबर ---8340290574 [email protected]