नफरत का बदला, नफरत सोचते हो।
सच कहता हूँ दोस्तों, गलत सोचते हो।
कभी प्यार और दोस्ती का भी मजा लो,
क्यूँ नई चाल , नई अदावत सोचते हो।
आसमाँ में उडते हो, नई परवाज लिए,
है ये फ़तेह किस के बदौलत, सोचते हो।
तुम ने कर लिए तामीर, सोने के महल,
के धरी रह जाएगी ये दौलत, सोचते हो।
हर मकाम पे खडे हैं रहजन “सागर”,
बडे नादान हो, हवा से खिलाफत सोचते हो।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”
नफरत के बदले अगर प्यार सोचते हो।
सच कहता हूँ यार, बेकार सोचते हो।
साँपों को दूध पिलाने में पुण्य मानते हो,
पागल कुत्तों में शान्ति की बहार सोचते हो। (संपादक)