राजनीति में भी तय हो योग्यता व परीक्षा
भारतवर्ष “आजादी का अमृत महोत्सव” स्वतंत्रता की ७५वीं वर्ष गांठ मना रहा है। इसलिए इस अवसर पर सम्पूर्ण भारतवर्ष को अपना मूल्यांकन करना चाहिए कि हम आज कहाँ खड़े हैं। भारतवर्ष के स्वतंत्र होने के बाद हमारी स्वतंत्रता हमे क्या दे रही है। केवल शाशन हमारा, सरकार हमारी, नियम हमारे के अलावा भी बहुत कुछ हमारा होना आवश्यक हो जाता है। क्या हम भाषा, पहनावा, भोजन, संस्कृति, परम्परा से भी स्वतंत्र हुए हैं या नही यह अभी भी विचार का विषय है वहीं दूसरी ओर यदि राजनीति की बात करें तो ध्यान में आता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति और उसके कुछ कुछ् वर्षों बाद तक राजनीति जनता की सेवा और राष्ट्र निर्माण का माध्यम थी। सावरकर, गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, डॉ केशव बलिराम हेडगेवार, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, डा. राजेन्द्र प्रसाद , सरदार पटेल, भीमराव अंबेडकर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, लाला लजपत राय, सरदार भगत सिंह, लाल बहादुर शास्त्री, आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, पंडित मदन मोहन मालवीय, जैसे अनेकों महान नेता मौजूद थे। इनका जीवन त्याग, तपस्या और बलिदान की प्रतिमूर्ति था। तथा राष्ट्र के प्रति समर्पित था। इनका जीवन न केवल आदर्श और अनुकरणीय था बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। तब से अब तक राजनीति का चाल, चरित्र और चेहरा पूरी तरह बदल चुका है। आज राजनीति व्यवसाय बन गई है। वर्तमान सन्दर्भ में यदि हम बात करते हैं तो इन दिनों हमारे देश में राजनीतिक उठापटक का माहौल जारी है। बेरोजगारी से लेकर महँगाई जैसे मुद्दे पर जहाँ सरकारों की प्रतिष्ठा दाव पर लग गई वहीं कई राज्य सरकारें भी अस्थिरता के दौर से गुजर रही हैं। यह हाल भारत का ही नहीं है, दुनिया भर के
राजनीतिक अखाड़ों में कोई न कोई उठापटक चल रही है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिक पत्रकारों का दायित्व बढ़ा है। साथ ही इस क्षेत्र के जानकारों के लिए करियर निर्माण के प्रतिष्ठापूर्ण अवसर भी निर्मित हुए हैं। राजनीति के इस दौर में राजनीति विज्ञान आज का सबसे प्रमुख विषय बन गया है । राजनीति हमारा व्यापार , व्यवसाय नहीं है। यह जनता की सेवा करने का माध्यम है। यह आवश्यक नही है कि राजनीति में आकर हर कार्यकर्ता विधायक, सांसद या मंत्री बने। एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में ईमानदारी से कार्य करके क्षेत्र से अच्छा नेता चुनकर भेजने का काम भी कार्यकर्ता ही करता है। जो हमाारे समाज का विकास करे। कहने का अर्थ यह है कि जिस हिसाब से नेताओं के वेतन और भत्ते बढ़ते जा रहे हैं, उसका कोई तो आधार होना चाहिये। आज तक इनकी योग्यता तो तय हो नहीं पाई है, अत: एक अनपढ़ सांसद को भी वही सब कुछ मिलता है जो एक पीएचडी धारी को।आप सेवा का कार्य मत करो, लेकिन उतना कार्य अवश्य करो जितना वेतन और भत्ते लेते हो। नहीं तो देश की जनता की खून-पसीने की कमाई को, जो कि वह विभिन्न करों के जरिये देती हैं, अपने ऐसो-आराम पर खर्च करने का आपको कोई अधिकार नहीं है। आपको जनता ने इसलिये तो नहीं चुना है कि आप सारे नेता इकट्टे होकर देश के ही खजाने को लूटकर अपने घर को भर लें। देश में अरबपतियों की तेज़ी से बढ़ती संख्या के बीच आप रोते रहिए कि राजनीति का पतन हो गया है और अब वह समाजसेवा या देशसेवा का ज़रिया नहीं रही, इन बहुमतवालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने इस स्थिति को सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यता भी दिला दी है।
राजनीति का अपराधीकरण बहुत तेजी से बढ़ रहा है। ’अपराधियों का चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना’ – यह हमारी निर्वाचन व्यवस्था का एक नाज़ुक अंग बन गया है। समाज में अपराध और हिंसा (कई क्षेत्रों में ’माफिया’ को उकसानेे वाले बिंदु तक) में वृद्धि होने के अनेक मूल कारण हैं। कानूनों की अनदेखी, सेवाओं की खराब गुणवत्ता और उनमें विद्यमान भ्रष्टाचार, कानून तोड़ने वालों का राजनीतिक, वर्ग, श्रेणी, संप्रदाय या जाति के आधार पर संरक्षण, अपराधों की जाँच में पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप, मामलों का धीमा अभियोजन, न्यायिक प्रक्रिया में वर्षों का असाधारण विलंब और ऊँची लागत, असंख्य मामलों का वापस लिया जाना पैरोल की अंधाधुंध मंज़ूरी आदि ऐसे कारण हैं जो अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
राजनेताओं का वेतन बढ़ते ही जा रहा है। यह विडम्बना ही है कि देश-सेवा के नाम पर राजनीति में प्रवेश करने वालों की आज तक कोई योग्यता तय नहीं की गई है। सोचने वाली बात है कि इस देश के पढ़े-लिखे युवा को नौकरी मिलती है तो उसकी हर प्रकार की योग्यता परखी जाती है, उस पर कई तरह की पाबन्दी होती है, और न्यूनतम वेतन मिलता है। उसी का न पढऩे वाला और राजनीतिक दलों से सांठ-गांठ रखने वाला दोस्त येन- केन प्रकरेण जब कही से जीत कर विधायक या सांसद बनता है तो पहले ही महीने से लाखों रुपये का वेतन, भत्ते, मुफ्त सरकारी आवास, मुफ्त बस, रेल और हवाई यात्रा, फोन, मोबाईल आदि सुविधायें पा जाता है। अतैव आज इस लोकतंत्र के विकृत स्वरुप से निजात पाने की आवश्यकता है। कोई ठोस समाधान की आवश्यकता है। सुधी जन इन परिस्थितियों पर विचार करें। देश को रास्ता दिखाएँ।