गीत
द्रोण,भीष्म गर बोले होते , शायद महासमर टल जाता ।
सोंचो बीच सभा में नारी ,
दुष्ट दुःशासन खींचे सारी ।
कोई नही विरोध कर सका,
थी शायद सबकी मति मारी।
जब चोपड़ का खेल सजा था, काश समय वो गर टल जाता।
द्रोण भीष्म गर………………………………..
भूमि न होती रक्तवर्ण कीं,
लाशें गिद्ध सियार न खाते।
न घर में विधवायें रोती ,
न बच्चे अनाथ हो जाते ।
जिसकी भेंट चढ़े सेनानी ,रण का काल कहर टल जाता ।
द्रोण भीष्म गर……………………………..
चाल शकुनि की सफल न होती,
ना भीषम शरशैय्या पाते ।
पुत्रहीन धृतराष्ट्र न होते ,
द्रोण न छल से मारे जाते ।
निगल गया जो वीर हजारों ,ऐसा प्रबल भँवर टल जाता ।
द्रोण भीष्म गर ………………………
सुनो द्रोण गुरु ! सुनो पितामह !
आज अगर चुप रह जाओगे ।
पूछेगा इतिहास अगर कल ,
तो उसको क्या बतालाओगे ?
सिर्फ तुम्हारे इक विरोध से ,प्रलयी वैश्वानर टल जाता।
द्रोण भीष्म………………………..
——-डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी