गीत/नवगीत

हे भावी आगंतुक

हे भावी आगंतुक जीवन में ऐसी पहचान बनो
गर्वित हो  संसार समूचा तुम ऐसे इंसान बनो।
हवा चली पश्चिमी ऐसी अपनी सभ्यता बदल गई
वेश भूषा भाषा बदली दैनिक सारी दशा बदल गई
डूबे झूठे दम्भ में ऐसे जीवन की कथा बदल गई
दोहराओ गुजरा वो जमना फिर ऐसी पतवार बनो
      गर्वित हो  संसार समूचा तुम ऐसे इंसान बनो।
बोलो भूल गए लगता है गाथा अपने वीरों की
सज्जन का मान बढ़ाते दुष्टों पर चलते तीरों की
ज्ञान विज्ञान शल्यक्रिया जो खोज करी ज़ीरो की
आओ जब भी इस जग में ऐसे तुम महान बनो।
      गर्वित हो  संसार समूचा तुम ऐसे इंसान बनो।
याद करो राणा प्रताप तात्या शिवाजी छत्रसाल
टूटे जो दुश्मन पर हमेशा बनकर के उनका काल
बनो भगत अशफ़ाक़ जरा शेखर से माटी के लाल
विवेकानंद राममोहन से सामाजिक क़िरदार बनो।
      गर्वित हो  संसार समूचा तुम ऐसे इंसान बनो।
बिटिया बन जन्मो गर बनना न नाज़ुक नादान
रूपवती पद्मनी दुर्गा और बनो रज़िया सुल्तान
मार खदेड़े रिपु को रण में झांसी रानी की कृपाण
देश पे बेटा वारे अपना पन्ना धाय का त्याग बनो।
     गर्वित हो  संसार समूचा तुम ऐसे इंसान बनो।
चमक सके जो दिव्य व्योम में ऐसे उदित प्रभाष बनो
आने वाली पीढ़ी का तुम स्वर्णिम सा इतिहास बनो
लिखने पर आजाओ जो तुलसी कबीर रैदास बनो
भारत माँ बलिहारी जाए ऐसे अटल सुभाष बनो।
        गर्वित हो  संसार समूचा तुम ऐसे इंसान बनो।

— अनामिका चौकसे ‘अनु’

अनामिका चौकसे 'अनु'

नरसिंह पुर (मध्य प्रदेश)