कविता
अपना घर तो सजा लिया
कीमती और सुंदर सामानों से
पर मन को सजाने का
कोई इंतजाम नहीं।
ढूंढते हैं खुशियाॅ दूसरों में
दौलत की चमक में
मन के खजाने को
ढूंढते हैं खुशियाॅ दूसरों में
दौलत की चमक में
मन के खजाने को
देखने का अरमान नहीं।
यह कैसे सोच लें हम
जीवन समरस ही रहेगा
दुखों से गुजरे बिना सुख की
यह कैसे सोच लें हम
जीवन समरस ही रहेगा
दुखों से गुजरे बिना सुख की
कोई पहचान नहीं।
उतार चढ़ाव ना हो जीवन में
तो स्थिरता का बोध कैसे हो
संघर्षों से हार मान जाए
उतार चढ़ाव ना हो जीवन में
तो स्थिरता का बोध कैसे हो
संघर्षों से हार मान जाए
वह इंसान नहीं।
पथिक नित अग्रसर रहे
तो संभलना आ ही जाता है
बीच में छोड़ दे सफर
ठोकरों के डर से और
खुद को समझाएं कि
पथिक नित अग्रसर रहे
तो संभलना आ ही जाता है
बीच में छोड़ दे सफर
ठोकरों के डर से और
खुद को समझाएं कि
मंजिल आसान नहीं”।
— मोहिनी गुप्ता
— मोहिनी गुप्ता