गीतिका
आदमी बुलबुला है पानी का ।
क्या भरोसा है जिंदगानी का ?
गोद में प्यार से शुरू होती ,
दुःख भरा अंत इस कहानी का ।
चार दिन बाद गुजर जायेगी,
मान करता हैं क्यों जवानी का ?
घाव तलवार से भी गहरे हैं,
असर है तेरी बदजुबानी का ।
मौत आयेगी तो सुनेगी क्या ?
क्या असर तेरी लंतरानी का ?
—————–© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी