तालिबान का क्रूर शासन
“”तालिबान का क्रूर शासन””
यह बिल्कुल सच है कि आज अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है वह मानवीय त्रासदी से कम कुछ भी नहीं है।
25 साल बाद अफगानिस्तान में तालिबान ने फिर से एंट्री की है और वो भी अमेरिका जैसी सुपर पावर की आंखों के सामने और अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद ही तालिबान ने एक महीने के अंदर ही अफ़ग़ानिस्तान में पूरी तरह से तख्तापटल करके रख दिया है।
अमेरिकी सेना का अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर जाना और तालिबानियों द्वारा क्रूरता से उस पर कब्जा करना कोई सत्ता परिवर्तन नहीं हैं। यह तो एक कट्टर इस्लामिक संघर्ष है, यह संघर्ष सदियों से चलता रहा है। इस्लामिक उग्रवादी संगठनों द्वारा शरीयत के नियमों को मानने पर लोगों को विवश किया जा रहा है और ना मानने वाले का सरेआम कत्ल कर दिया जाता है। इस्लामिक संगठनों से निकला यह विचार क्रुर आतंक का घिनौना नाच कर रहा है। और ये मानवता के लिए प्रश्न चिन्ह बनकर खड़ा हो गया है ।दुनिया के आधे से अधिक देशों में इस्लाम का वर्चस्व हैं परंतु तालिबान के आतंक, अत्याचार का विरोध नहीं किया है ,इससे यह बात तो साफ है कि वह देश सीधे तौर पर तालिबान का समर्थन नहीं कर रहे हैं परंतु परोक्ष रूप से समर्थक हैं।
तालिबानियों के क्रूर आतंक के भय से अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी सहित बड़े बड़े नेता वेश बदलकर अपने परिवार के साथ अपना देश छोड़ कर उज़्बेकिस्तान भाग गए हैं ।
तालिबान की इस जीत से पता चलता है कि आज भीं एक धर्म में इतना उन्माद है जो किसी भी देश की सत्ता को अपने धर्म के नाम पर ले सकता हैं,,, दरअसल अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए तालिबान का मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान में शरिया स्थापित करना है। एक अन्य उद्देश्य गजवा-ए-हिंद के निजाम की स्थापना करना है ।यह भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश और अफगानिस्तान में शरिया के अनुसार पूर्ण इस्लामी कानून लाने के लिए है।
अफगानिस्तान की स्थिति देखकर कष्ट से ज्यादा आश्चर्य होता है,,,भारत और अफगानिस्तान पड़ोसी देश है। मुस्लिम महिलाएं और पुरुष भी शरिया कानून की मांग करते रहे हैं। भारत में हिंदुत्व का विरोध करते रहे हैं, ब्राह्मणवाद से आजादी चाहिए लेकिन जब अफगानिस्तान में शरीयत का पालन करने वाला दृढ़ इस्लाम स्थापित हो गया है तो वहां के मुसलमान अपनी स्त्रियों को छोड़कर भाग रहे हैं और यहां के मुसलमान खुशी मना रहे हैं कि भले तालिबान आया ।
दोनों बातें समझ से परे हैं वहां से जो भाग रहे हैं क्या वे मुसलमान नहीं जो शरिया से डरते हैं ?? यहां के जो खुश हो रहे हैं क्या उनके लिए स्त्रियां मंडी में खरीदने बेचने की वस्तु मात्र हैं ?? जानवरों की तरह??
खैर इस्लाम में तो स्त्री और पशु के साथ एक जैसा ही बर्ताव होता है ।
यहां सबसे मजेदार बात तो यह है कि जो लोग दूसरे मुल्कों में शरिया कानून की वकालत करते हैं । वह खुद अपने देश में शरिया कानून के अंदर नहीं रहना चाहते । इन लोगों को भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और जुल्म नजर आता है मगर फिर भी यह लोग भारत में ही रहना चाहते हैं आगे की चंद पंक्तियां इन लोगों को समर्पित हैं।
जो कहते थे डर लगता है हमें भारत में
रहा नहीं अब ये रहने लायक
बैठे हैं आज वह ना जाने किस बिल में जाकर
बिल से निकल के तो देखो ओ डरने वालों
सुन ली है दुआ तुम्हारी खुदा ने
भिजवाया है पैगाम
बुलाया है तालिबान तुमको खुदा ने
कर रहा हैं इंतजार तुम्हारा
हो जाओ तैयार जाने को जन्नत में
फिर कभी ना देखना मुड़कर मेरे भारत में
जहां तुम्हें डर लगता है।।
भारत के अधिकांश गद्दार लोग तालिबान का मौन और मुखर समर्थन कर रहे हैं तो अब सवाल यह उठता है कि यदि तालिबान भारत की ओर रुख करें तो यह भारतीय गद्दार उनके पक्ष में खड़े हो जाएंगे।
कुछ गद्दार गलत नजीरे,चित्र और वीडियो दिखाकर भारत सरकार को दोषी बना रहे हैं,कोरोना से भारत जिस कामयाब तरीके से निपट रहा है उससे उन्हें समस्या है।
झूठ का सहारा लेकर देश को गुमराह कर रहे हैं।
ये गद्दार गृह युद्ध के लिए तैयार बैठे हैं यही तो मूल रूप से तालिबानी है ।
अब देखना यह होगा कि इसका भारत पर क्या असर पड़ता है, लेकिन इतना तय है कि हमारे पड़ोस में एक ऐसा देश है जो सीधे तौर पर आतंकियों द्वारा चलाया जाता है और दूसरा एक ऐसा देश है जो परोक्ष रूप से आतंकियों द्वारा चलाया जाता है यह सब पूरे उपमहाद्वीप में अराजकता को बढ़ाएगा और भारत को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा l
अपने खुद के वतन में तालिबान के क्रूर शासन के डर से भागते हुए लोग,,एयरपोर्ट पर लोगों का ये हुजूम, हर कोई बस इसी फिराक में है कि किसी तरह अफगानिस्तान से जान बचाकर निकला जाए ।हम में से अधिकतर लोगों का दिल इन तस्वीरों को देखकर पसीज सकता है ।
तो ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भारत को इन लोगों को शरण देनी चाहिए ??
मेरा यह स्पष्ट मानना है कि ऐसा करना हमारे लिए खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हैं और ऐसा करके हम हमारे अपने भारत देश में भी भविष्य में उसी मानवीय त्रासदी को आमंत्रण दे रहे होंगे जो आज अफगानिस्तान की जनता झेल रही है।
अफगानिस्तान की बहुसंख्यक आबादी सुन्नी मुसलमान है जहां के अल्पसंख्यक हिंदू सिख समुदाय को लगभग पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है ।अमेरिका की एक संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि अफगानिस्तान के 99% लोग धर्मनिरपेक्ष कानूनों की बजाय शरिया कानून का समर्थन करते हैं और उनमें से अधिकतर लोग अन्य क्रूर इस्लामिक प्रथाओं और आत्मघाती हमले इत्यादि का भी समर्थन करते हैं।
तालिबान के डर से भाग रहे काबुल के इन लोगों में अधिकतर वह लोग हैं जो अशरफ गनी की सरकार और वहां की फौज एवं अमेरिका के लिए काम कर चुके हैं । कई लोग ऐसे भी हैं जो जातीयता से ताल्लुक रखते हैं। इन्हें तालिबान के हाथों उत्पीड़न होने का डर है। ये लोग ना तो सेक्युलर है और ना ही भारत के हितैषी।
अफ़गानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण होने का यह भी मतलब है कि देश में अब पाकिस्तानी सेना और उसकी ख़ुफ़िया एजेंसियों का प्रभाव निर्णायक हो जाएगा।
अंत में इतना ही कि अफ़गानिस्तान में लोकतंत्र को गुंडों ने कुचला ,,,,बेशर्म दुनिया केवल तमाशबीन बनी ।।
सविता जे राजपुरोहित