शोभन प्रभात
भानु उदित देता संदेशा, नव प्रभात – नव युग की आशा
संयम-निर्मल चिंतन धारा, गंगा ले बहती है माला
वसुंधरा निज देह सलोना, सजा लेती पहने वनमाला
इंद्रधनुष रंगत फूलों का, सौरभ मोहित करता बहता
ऊपर से लहरें तो मारता, मोती अंदर छुपाके रखता
श्वेत वस्त्र से जलधि तरंगा, सज-धजकर नखरे दिखलाता
सरिता बहती लेकर शोभा, स्वर्ण-वर्ण मीनों का वासा
कमल-कुमुद सुंदर सतरंगा, पोखरों में खिल उठते ज़ारा
वन का मृग-दल चरता-फिरता, आज़ादी को इंगित करता
नभचर पर फैलाके लगाता, चक्कर, गाकर गीत अनोखा
देखके मनमोहन यह नज़ारा, शिथिल भाव फिर किसे लगेगा
जागो सब निद्रा से अनिष्टा, तीसरी आँख से निहार नयना
_ कलणि वि. पनागाॅड