देह और नारी
मैं दान की चीज़ नहीं
नहीं मैं भोग विलास की वस्तु ।
मैं देह नहीं हूं, केवल
मैं अंतरात्मा हूँ तेरी ।
मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ ।।
मैं ममता की समंदर
मुझमें, धैर्य का सागर
मेरी क्षमता मेरे अंदर
मैं धरती माँ हूँ तेरी ।।
मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ…
मैं ममता माया मनोरमा
मैं श्याम सखी अरूणिमा ।
मैं साधना, आराधना ।
मैं अर्चना, उपासना ।।
मैं देह नहीं हूँ, केवल
मैं मन भी रखती हूं ।
आत्मस्वरूपिणी मैं नारी हूँ ।
मैं नारी हूँ, मैं नारी हूँ…
सौ- सौ मन मेरे अंदर ।
केवल बूंद नहीं मैं समंदर
मेरी गहराई है मेरे अंदर
बरसाती हूँ प्रीत का सागर ।।
मैं नारी हूँ…
— डॉ मीरा त्रिपाठी पांडेय