खुद से अच्छा दोस्त कोई नहीं
छवि और अवि में अच्छी दोस्ती थी। दोनों एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाती। एक ही कॉलेज में होने के कारण हर काम साथ- साथ करती। कहीं जाना होता दोनों साथ मे जाती। लोग दोनों की दोस्ती की मिसाल दिया करते। अवि काफ़ी मेहनती थी। छवि उसकी थोड़ी भी हेल्प कर देती तो वो हर चीज़ में काफ़ी अच्छा करके दिखती। कुछ लोग तो उनकी दोस्ती से जलने भी लगे और एक दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काने की कोशिश भी करते। अवि किसी भी तरह लोगों के भड़काने में नहीं आती और छोटी – बड़ी हर परेशानी में छवि का साथ देती। पर कुछ दिनों के बाद अचानक छवि उखड़ी उखड़ी रहने लगी। अवि को लगा वो अपनी माँ की बीमारी की वजह से परेशान है, और शायद इसी वजह से उससे ठीक से बात नहीं कर पा रही । अवि अपनी पूरी कोशिश करती उसे खुश रखने की पर छवि पहले की तरह उससे बात नहीं करती।एक बार अवि को कॉलेज की तरफ़ से एक बड़ा टास्क मिला। उसे भरोसा था कि छवि उसकी मदद ज़रूर करेगी। किन्तु हुआ इसके विपरीत। जब भी अवि उससे बात करना चाहती छवि उसे बहाने बनाकर मना कर देती।
अवि अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी।और रोज़ ईश्वर से यही प्रार्थना करती कि उसकी दोस्त वापस से उसके साथ हो जाय। पर जैसे ईश्वर भी ये न चाहतें हो। दोनों में दूरियाँ बढ़ती जा रहीं थी। एक दिन अवि से न रहा गया वो छवि से मिलने उसके लिये उसकी मनपसंद सेव बनाकर उसके घर पहुँची। वहाँ जाकर पता चला की छवि अपनी किसी नई दोस्त के साथ शहर के बाहर घूमने गयी है। अवि को ये जानकर बहुत दुःख हुआ। वो समझ नहीं पा रही थी कि छवि जो उसे बिना बताये कोई काम नहीं करती थी। आज इतना कैसे बदल सकती है। यहाँ मैं इतना परेशान हूँ, और वो पिकनिक मना रही है वो भी किसी नई दोस्त के साथ। बड़े ही दुःखी मन से वो घर वापस आयी और अपने कामों में दिन-रात लगी रही। अवि ने कॉलेज से मिलने वाले टास्क को अकेले ही पूरा किया। अवि को पूरे कॉलेज के सामने सम्मानित किया गया। आज छवि दूर खड़ी उसे सम्मानित होते देख रही थी। अब अवि समझ चुकी थी कि दूसरों से मदद माँगने से अच्छा हम खुद अपने मित्र बनकर अपनी मदद करें। सच ही तो है खुद से अच्छा दोस्त कोई नहीं।
— आसिया फ़ारूक़ी