ग़ज़ल
फ़िज़ा दिल की रंगत उड़ा ले गई,
गई रात मेरी बला ले गयी ।
बहुत आरज़ू थी कि बरसे घटा,
हवा बादलों को उड़ा ले गयी ।
जहाँ चाँद तारों की चाहत बढ़ी
मुझे मेरी मिट्टी बुला ले गयी।
निगाहों में जाने है कैसी कशिश
मेरे दिल को वो तो लुभा ले गयी
जहाँ मौत बनके है आई हवा
मेरा हौसला वो सदा ले गयी।
जहाँ दिल के दर्या में हलचल उठी
मेरी ख़ामुशी वो बढ़ा ले गयी ।
वो आई थी आँधी यूँ कैसी ‘किरण’
मुहब्बत का सब सिलसिला ले गई