कविता

शिक्षक होने पर गर्व है

मुझे अपने शिक्षक
होने पर गर्व है।
नौनिहालों के भविष्य को
संवारने का पावन कार्य करना
हमारा कर्तव्य है।
मैं भी गढ़ती हूं कुम्हार की तरह,
सजाती हूं माली की तरह
कांट-छांट कर उनके नन्हे
हाथों को पकड़ कर जब
लिखना सिखाती हूं।
तो मेरा हृदय खुशियों से
भर जाता है नन्ही तितलियों की
तरह जब वे फुदकते हैं मेरे
आगे -पीछे,तो मेरा बचपन फिर से
उनके साथ लौट आता है।
उंगली पकड़ कर जब
ककहरा सिखाती हूं तो सच कहूं
अपने आप पर रश्क होता है
कि मैं भी किसी के स्वप्नों को
साकार करने का माध्यम हूं।
उन्हें संस्कारित करने का हेतु हूं।
उनके मनोभावों को सकारात्मक
दिशा देने का कारण हूं।
देश को भावी कर्णधार मेरे
प्रयास से मिलेगा,
मैं भावविभोर हो जाती हूं।
अपने गुरु जी का सदैव
सम्मान किया है,उसी के
फलीभूत मैं भी उस
सम्मान से सम्मानित हूं।
मेरे लिए शिक्षक दिवस
एक दिन नहीं,बल्कि कभी
न क्षय होने वाला अक्षुण्ण पर्व है।
क्योंकि,मुझे अपने
शिक्षक होने पर गर्व है।
— अनुपम चतुर्वेदी

अनुपम चतुर्वेदी

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, गजलगो व मुक्तकार,संतकबीर नगर,उ०प्र०