लघुकथा

हरतालिका तीज

“अच्छा-खासा मूड था आपका, यूँ अकस्मात आपके सलोने चेहरे पर तनाव की बदलियाँ क्यों मँडराने लगी मोहतरमा? आपकी शान में कोई गुस्ताखी की हो, याद नहीं। समस्या को जुबाँ तक आने का कष्ट दें तो मदद करूँ।”

“यह सास बहू का मामला है, यहाँ आपकी पैंतरेबाजी काम नहीं आएगी।”

“बताओगी तब समझूँगा। तुम्हारी पहेलियों से मैं हारा।”

“परसों हरतालिका तीज का निर्जला व्रत रखना है। उस दिन ऑफिस का कार्यक्रम भी बड़ा भाग-दौड़ वाला है।”

“हाँ तो ठीक है न। जूस वगैरा ले लेना, हमेशा की तरह।”

“असंभव! माँजी आई हुई हैं, जिनकी पूजा पाठ के प्रति आसक्ति और नियम कायदे सख्त हैं। उन्होंने निर्जला कहा तो निर्जला व्रत ही रखना होगा।”

“यह कैसे संभव है? हमारा बाबू अभी छोटा है, तुम्हारा स्वास्थ्य गिरा तो बड़ी मुसीबत होगी।”

“मैंने कोशिश की पर असफल रही। ‘नए जमाने की लड़कियाँ बड़ी नाजुक हैं’, खिताब मिला। अपनी माँ से कहूँ? माँजी को फोन से समझाने का प्रयास करें। गर्मी और दौड़-धूप से कहीं…?”

“उन्हें मत परेशान करो, मैं बात करूँगा। माताओं ने जबसे बेटियों की सुध लेनी शुरू की है, जमाने को कहने का मौका मिल गया है कि बेटियों की गृहस्थी में दखलअंदाजी हो रही है। मुझे ही कुछ करने दो। याद है, बचपन में हमने एक नाटिका की थी स्कूल में? जबर्दस्त हिट हुआ था, पुरस्कार भी मिला था।”

“हाँ! विषय था, ‘परफेक्ट पार्टनर – जो सारे काम मिलबाँट कर करें।’ हम छोटे थे, पर अभिनय अच्छा किया होगा, तभी खूब तालियाँ बजी थीं। तब से अबतक साथ-साथ ही हैं” वह मुस्कुराई।

“मैं यूँ गया और माँ से बात करके आया।”

“माँ! कहाँ हो तुम?”

“इधर अपने कमरे में। क्यों ढूँढ रहा है मुझे?”

“माँ! तुमने कहा कि निर्जला व्रत रखना सर्वश्रेष्ठ है तो मैंने सोचा कि उसका जीवन साथी हूँ, उसका साथ दूँ। तीज के दिन हम दोनों निर्जला व्रत रखेंगे।”

“यह कैसी रीत? पुरुष कहीं व्रत रखते हैं! दफ्तर नहीं जाना क्या? चक्कर-वक्कर आये तो?”

“दफ्तर तो तेरी बहू भी जाती है। दूधमुँहा बच्चा भी है उसका। क्या उसे चक्कर नहीं आएँगे? वह रख सकती है तो मैं क्यों नहीं? मुझ में ताकत कम तो नहीं।”

“हे भगवान! आजकल के लड़के, पूरे जोरू के गुलाम! बीवी के साथ इन्हें भी व्रत रखना है! एक हमारा जमाना था, तेरे पिता अपनी माँ के आगे चूँ भी नहीं करते थे। इसे देखो, जब देखो बीवी की पैरवी!”

“तेरी ‘हमारा जमाना’ की रेलगाड़ी फिर चल पड़ी माँ! जल्दी बता तेरा फैसला क्या है? मैं तेरी बहू को बोलूँ कि तीज के दिन जूस वगैरह ले सकती है, या फिर मैं भी निर्जला व्रत रखने को तैयार रहूँ?”

“जा बाबा जा! तुझे जो ठीक लगे, बहू को जाकर बोल दे! कौन जीत पाया है तुझसे?”

— नीना सिन्हा

नीना सिन्हा

जन्मतिथि : 29 अप्रैल जन्मस्थान : पटना, बिहार शिक्षा- पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। साहित्य संबंधित-पिछले दो वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, सोच-विचार पत्रिका, विश्व गाथा पत्रिका- गुजरात, पुरवाई-यूके , प्रणाम पर्यटन, साहित्यांजलि प्रभा- प्रयागराज, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मथुरा, सुरभि सलोनी- मुंबई, अरण्य वाणी-पलामू,झारखंड, ,आलोक पर्व, सच की दस्तक, प्रखर गूँज साहित्य नामा, संगिनी- गुजरात, समयानुकूल-उत्तर प्रदेश, शबरी - तमिलनाडु, भाग्य दर्पण- लखीमपुर खीरी, मुस्कान पत्रिका- मुंबई, पंखुरी- उत्तराखंड, नव साहित्य त्रिवेणी- कोलकाता, हिंदी अब्राड, हम हिंदुस्तानी-यूएसए, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ, साहित्य सांदीपनि- उज्जैन ,इत्यादि। वर्तमान पता: श्री अशोक कुमार, ई-3/101, अक्षरा स्विस कोर्ट 105-106, नबलिया पारा रोड बारिशा, कोलकाता - 700008 पश्चिम बंगाल ई-मेल : [email protected] व्हाट्सएप नंबर : 6290273367