रिश्ते
ये रिश्ते …भी कैसे हैं रिश्ते
जब बनते ..तब जीवन खिलते
जब .. मन को पीड़ित करते
तब ..भीतर से जख्म रिसते
अपनों से …ज्यादा गम होता है
औरों से कुछ .. कम होता है
लेकिन गम तो गम होता है
ज्यादा हो ..या कम होता है
गम की क्या …परिभाषा है
जिससे बांधी ..अभिलाषा है
उसने डोर खींची ..जब मन की
नि:शेष हुई …आशा जीवन की
इसी लिए सबसे .. कहता हूं
अपनी ही धुन में …बहता हूं
आशाओं के दीप जलाओ
अपना जीवन हर्षित कर जाओ !!!
— डॉ प्रभात द्विवेदी