बिम्ब प्रतिबिम्ब (भाग 2)
मैंने टीवी बंद किया. सन्नाटा पसर गया. दर्शन ने चुप्पी तोड़ी. “ताया जी, इस सीरिज के बाद नी खेलांगे, ये लास्ट होंदी…”. यह सुन कर हरमीत की आँख में आँसू आ गये. फिर भी वे काफी संयमित रहे. दर्शन को उन्होंने घर जाने को कहा. दर्शन के निकलने के बाद उन्होंने कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष को फोन लगाया…
“वीर, मैं हरमीत, सब चंगा सी?”
उधर जो अध्यक्ष थे, वे हरमीत से बहुत जूनियर थे, लेकिन हरमीत की बहुत इज्जत करते थे, और दर्शन उनके ही कारण बार बार टीम में शामिल होता है, ऐसा मीडिया का मानना था. फिर भी, कम से कम हरमीत को वे विश्वासपात्र लगते थे. उनका उत्तर मुझे साफ सुनाई दे रहा था… चंगा, पाजी… आप कैसे हो?”
“दर्शन नूँ फिर ले लिया, अबकी बार भी ओनूं बेंच पे ही बैठाके रखोगे?”
“पाजी, मैं की करां, टीम बनाने के बाद तो कैप्टन और मैनेजमेंट फैसला करता है.”
“वीर, मैंनूं ना दस… मैंनू वी पता सीगा…”
“पाजी, आपको तो पता है, अभी जो कैप्टन है, वो दर्शन का जूनियर है, उसको भी पता है कि दर्शन बढ़िया खेल गया तो सारा कॉम्बीनेशन बिगड़ जायेगा. खासकर बॉलिंग में. यह बात किसी से छिपी तो है नहीं, जानते सब हैं, पर बोलता कोई नहीं.”
“वीरजी, बस एक मौका दे दो दर्शन नूँ. फेर वो संन्यास ले लेगा. फिर तुम और तुम्हारा कैप्टन, जो मर्जी हो करना…”
अब वे साहब पिघल गये. थोड़े मानमनौव्वल के बाद वे इस बात पर राजी हो गये कि दर्शन अगर संन्यास ले रहा है तो उसे एक टेस्ट मैच “फेयरवेल टेस्ट” के रूप खेलने को मिल जायेगा. लेकिन, वह अगली सीरीज का कौनसा टेस्ट होगा, यह फैसला कैप्टन और मैनेजमेंट ही करेगा.
और फिर वही हुआ, अगले दिन दर्शन के संन्यास लेने की खबर थी, जिस पर कई लोगों की प्रतिक्रिया थी कि उसमें अभी बहुत क्रिकेट बचा है, और संन्यास इतना शीघ्र नहीं लेना चाहिये, कई खिलाड़ियों ने हरमीत और दर्शन को फोन कर पुनर्विचार करने के लिये भी कहा, लेकिन वे दोनों खालिस पंजाबी. एक बार ठान लिया तो ठान लिया. शाम तक भारतीय टीम के कप्तान ने भी कह दिया कि दर्शन की कमी बहुत खलेगी, लेकिन उसके फैसले का सम्मान करते हुए अगली सीरीज में का अंतिम मैच उसके लिये यादगार रहेगा. यानि कम से कम अंतिम मैच में तो दर्शन अंतिम ग्यारह में जरूर खेलेगा.
मैं उन दिनों बहुत व्यस्त था, लेकिन जानता था कि दर्शन को मेरी बायोमैकेनिक्स सेवाओं की जरूरत रहेगी. तो हमने इसकी व्यवस्था कर ली. हर रोज सवेरे, दर्शन की गेंदबाजी और बल्लेबाजी की फोटोग्राफी की जाती, हरमीत उनकी फाइल लेकर मेरी प्रयोगशाला में आ जाते और फिर जब भी समय मिलता, हम दोनों उसका अलग अलग कोण, अलग अलग गति से अवलोकन करते. साथ ही उसके आक्सीजन, प्रोटीन और मेटाबालिक स्तर की जाँच के लिये हम उसकी खुराक पर काम करते रहते. कुल मिलाकर हमारा सारा समय अब दर्शन की फिटनेस, तकनीक और उसमें सुधार को समर्पित था.
एक दिन सवेरे सवेरे हमारे एक मित्र शेखर का संदेश आया. शेखर, अमेरिका के एक प्रख्यात वैज्ञानिक संस्थान में एक शोध परियोजना का अध्यक्ष था. उसने मुझे कुछ फाईल भेजीं थीं और वह मुझसे उन पर टिप्पणी चाहता था.
मैंने पहला फोल्डर खोला. उसमें दो फाईल थीं, दोनों के नाम एक से थे, सिवा एक फाईल के नाम के अंत में लगे, अतिरिक्त एम के. वे फाईल चूहे की सीटी स्कैन की फाईल थीं. पर मुझे दोनों में कोई समानता या अंतर करने लायक बिंदु मिला नहीं. इसी प्रकार कई और फाईल खोल कर देखीं, पर मुझे ज्यादा समझ नहीं आया.
लगभग ग्यारह बजे शेखर का फोन आया, हरमीत भी पास बैठे थे, हमारे विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दिनों में शेखर भौतिकी का छात्र था और वह भी हरमीत से परिचित था, एक ही छात्रावास में रहने के कारण. बल्कि क्रिकेट का फैन होने के कारण शेखर दोनों पिता पुत्र का भी मुरीद था. अतः वीडियो पर शेखर हम दोनों से बात कर पा रहा था.
“ओये, तूने ध्यान से देखा ही नहीं यार… मैंने कितना बड़ा काम कर दिया?”
“शेखर, भाई, कुछ लिख कर भेजता, मुझे खाली फाईल्स भेजी है तूने, क्या देखना है, बताता तो सही.”
“भाप्पे, अब बता रहा हूँ, दोनों फाईल साथ साथ खोल, एक लेफ्ट और एक राइट में रख. फिर देख…”
सभी फोल्डरों में दो दो फाईलों के जोड़े थे. मैंने वही किया, जैसा शेखर ने कहा. दायीं फाईल बायीं फाईल से उलट थीं, यानि वे एक दूसरे की प्रतिबिंब थीं. मैंने शेखर से पूछा, तो इसमें बड़ी बात क्या है… शेखर फट पड़ा….
“ओये…. $#%^@#, यहाँ साले मर गये काम करते करते, और तुम कहते हो बड़ी बात क्या है?”
आगे उसने जो बताया वह वाकई हैरतअंगेज था…
सैद्धांतिक भौतिकी में माना जाता है कि लम्बाई, चौड़ाई, उँचाई और समय की चार विमाओं (Dimensions) के सिवा भी कुछ और विमाएँ संभव हैं, यानि विमाएँ चार से अधिक हो सकती हैं. हम किसी भी वस्तु को दोनों आँखों से गतिमान देखते हैं तो चार विमाओं में, वह स्थिर हो जाये तो तीन विमाओं में, यदि उसका फोटो लेकर देखा जाये तो दो विमाओं में देखा जाता है. यदि किसी स्थान पर, एक विमा का लोप होता है तो वह अपने लम्बवत एक सीधी रेखा के रूप में ही दिखती है. इसके विपरीत, सिनेमा हाल में सिनेमा (लम्बाई चौड़ाई और समय) तीन विमाओं में दिखता है, पर हम दोनों आँखों से अलग अलग दृश्य देखें तो गहराई की विमा सहित हम चार विमाओं में भी फिल्म देख सकते हैं, जैसा कुछ भारतीय और विदेशी फिल्मों में हमने अनुभव भी किया है. विमाओं का संसार निराला है,
शेखर सहित कई वैज्ञानिक दो विमाओं के बीच की सीधी रेखाओं से लोप हुई विमाएँ खोजने में जुटे थे. शेखर ने इसके लिये अभिनव प्रयोग किये थे, और उसका एक प्रयोग, जिसे “दोलन प्रयोग” के नाम से प्रसिद्धि मिल चुकी थी, बेहद रोचक था. उसका सिद्धांत बेहद सरल था कि कोई भी दोलक यदि अपनी मध्य स्थिति से थोड़ा विस्थापित किया जाये, तो वह अनंत काल तक मध्य स्थिति के गिर्द दोलन करता रहेगा. यानि दोलन के कारण उसमें एक विमा और जुड़ जायेगी. शेखर ने इस प्रयोग के कई व्यावसायिक पहलू खोजे थे और बहुत नाम तथा धन कमाया था.
“सुन बे, तुम साले अपनी पॉलिटिक्स और अपनी होशियारी का बैंड बजाते रहो. मैं तुमको दिखाता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ. हरमीत पाजी, आप भी सुनो… मैं किसी भी चीज में से एक डायमेंशन निकाल कर उसको पापड़ जैसा पतला कर सकता हूँ, और चाहूँ तो उसको मिरर इमेज में उलट सकता हूँ. यह है मेरी असल खोज, आइगन आइना.”
अब उसने जो दिखाया वह चकित करने वाला था. उसने कुछ सजीव तथा निर्जीव वस्तुओं पर प्रयोग किया जो दायें बायें लगभग एक जैसी होती हैं. उसने उनको परमाण्विक स्तर पर दोलन करवाया और विपरीत दिशा में अधिकतम दोलन पर रोक दिया. इस प्रकार परमाण्विक स्तर पर, बिना उर्जा के क्षय के, हर चीज अपने ही प्रतिबिंब में बदल जाती थी. हमने आइगन वेक्टर और आइगन मूल्याङ्कन, गणित में पढ़ा था, और दो विमाओं वाले मैट्रिक्स में कुछ हद तक समझा भी था, पर दो से अधिक विमाओं में इसका अनुप्रयोग हमारी तार्किक सीमाओं से भी परे था…
“देखो पाजी, यह चूहा… इसकी दायीं टांग नहीं है… अब मैंने इसे बिठाया इस जगह… ये चली मशीन… और अब ये देखो… मशीन रुक गयी, चूहा जिंदा है लेकिन अब इसकी दायीं टांग है, पर बायीं टाँग नहीं है… यानि कटी हुई दायीँ टाँग अब बायीं तरफ आ गयी है… यह है कमाल मेरे आइगन आईने का”
मैं और हरमीत दोनों आँखें फाड़े स्क्रीन पर शेखर के कारनामे देख रहे थे…
यह प्रयोग हमारे जीवन में क्या उथल पुथल मचाने वाला है, अगले अंक में…
— रंजन माहेश्वरी