ईमानदारी की रोटी
अपनी मेहनत से जो
ईमानदारी की रोटी खाते हैं।
किसानों के दुःख दर्द
सिर्फ वे लोग ही बुझ पाते हैं।
झूठ फरेब और धोखाधड़ी
जिन लोगों का पेशा है।
वे भला क्या समझ सकते
किसानी करना कैसा है।
चाहे कैसी भी सर्दी,गर्मी हो
या हो वर्षा मूसलाधार।
किसान दिन-रात डटे रहते
चाहे खेत हो या बधार।
सूरज निकलने से पहले
जो खेतों में पहुंच जाते हैं।
बता नहीं सकता संसार
कब वे घर लौटकर आते हैं।
चीर के सीना धरती के जो
अन्न,फल,सब्जी ऊपजाते हैं।
खुद रुखा सुखा खाकर भी
पहले दुनिया को खिलाते हैं।
जो लोग खून पसीने से
एक-एक पौधे को सींचते हैं।
उन्हें भला क्या होगा पता
जो बैठकर कुर्सी पर खाते हैं।
फटा कपड़ा,उघड़ा तन
किसानों की अलग पहचान।
अपने कर्मपथ पर अडिग रहते
चाहे कैसा भी आ जाए तूफान।
अपने काम में हरदम किसान
चुपचाप से लगे रहते हैं।
मगर जब कभी भी कोई
उनके जमीर को ललकारे।
तब तक किसान चुप ना बैठते
जब तक ले लेते नहीं इंतकाम।
किसान गलती से भी कभी
किसी को पहले नहीं छेड़ते हैं।
पर कोई उन्हें जानबूझ छेड़ देता तो
उसे मिटाए बिना नहीं छोड़ते हैं।
जितने ध्यान से वे खेती करते
उतने ही ध्यान से करते हैं मतदान।
आज किसानों के बदौलत ही
बची हुई है लोकतंत्र में कुछ जान।
अगर किसान भी बिकाऊ हो जाएं तो
पल में मिट जायेगा देश का संविधान।
किसानों को मदद की जरूरत है
बहुत सोच गौतम कर रहा आह्वान।
अगर तीनों कृषि बिल खत्म ना हुए
तो मिट जाएंगे लाखों किसान।
अब सब आपके विवेक के ऊपर है
आपको पूंजीपति चाहिए या किसान।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम