किसे पता
मंजिल अभी और दूर कितनी, किसे पता है
मिलेंगें राह में कांटें या कलियां, किसे पता है
फर्ज मुसाफिर का सिर्फ चलते चले जाना
मिले किसे मोड, हमसफर, किसे पता है
दिये जला दिये राह में, भूले भटकों के लिये
कितनी उम्र मगर चिराग की, किसे पता है
कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में
सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है
दिखा रहा है खौफ, मासूमों मजलूमों को
खुद भी है वो डरा डरा मगर किसे पता है
ख्वामखाह घुलता आदम, फिक्रे जिंदगी में
होनी कब किस करवट बैठे, किसे पता है
बुलंदियों के खातिर ये खूनो खराबा कैसा
ढल जाये सूरज किस घडी, किसे पता है
पलाश करती नहीं भरोसा, बंद आंखों से
शक्लो सूरत जयचंद की भला किसे पता है