गीतिका/ग़ज़ल

किसे पता

मंजिल अभी और दूर कितनी, किसे पता है

मिलेंगें राह में कांटें या कलियां, किसे पता है

फर्ज मुसाफिर का सिर्फ चलते चले जाना

मिले किसे मोड, हमसफर, किसे पता है

दिये जला दिये राह में, भूले भटकों के लिये

कितनी उम्र मगर चिराग की, किसे पता है

कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में

सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है

दिखा रहा है खौफ, मासूमों मजलूमों को

खुद भी है वो डरा डरा मगर किसे पता है

ख्वामखाह घुलता आदम, फिक्रे जिंदगी में

होनी कब किस करवट बैठे, किसे पता है

बुलंदियों के खातिर ये खूनो खराबा कैसा

ढल जाये सूरज किस घडी, किसे पता है

पलाश करती नहीं भरोसा, बंद आंखों से

शक्लो सूरत जयचंद की भला किसे पता है

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी

मैं मोती लाल नेहरू ,नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेकनालाजी से कम्प्यूटर साइंस मे शोध कार्य के पश्चात इंजीनियरिंग कालेज में संगणक विज्ञान विभाग में कार्यरत हूँ ।हिन्दी साहित्य पढना और लिखना मेरा शौक है। पिछले कुछ वर्षों में कई संकलनों में रचानायें प्रकाशित हो चुकी हैं, समय समय पर अखबारों में भी प्रकाशन होता रहता है। २०१० से पलाश नाम से ब्लाग लिख रही हूँ प्रकाशित कृतियां : सारांश समय का स्रूजन सागर भार -२, जीवन हस्ताक्षर एवं काव्य सुगन्ध ( सभी साझा संकलन), पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें ई.मेल : [email protected] ब्लाग : www.aprnatripathi.blogspot.com