सामाजिक

श्राद्ध की परंपरा को निभाते हुए इंसान: वर्तमान परिवेश में समीक्षा

कटु मगर सत्य है, सुनना चाहें तो सुन लीजिए और पढ़कर कुछ हृदय में जाग जाए तो सोचिएगा कि श्राद्ध का अर्थ क्या है ? अपने घर-परिवार के पितरों को प्रतिवर्ष श्रध्द्धांजली देना ! उनको ईश की तरह नमन कर ये बतलाना कि आप सब की कमी हमें बहुत खलती है या आपके आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सफल है ! वगैरा,वगैरा……|
ज़रा सोचिए इसके मायने कि जो बुजुर्ग या बड़े अपना सारा जीवन अपनी संतान के लिए, उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और एक उम्र के बाद उम्मीदों की आस बूढ़ी आँखों में भर कर अपनी बच्चों को आसमां-सा समझ निहारते हैं, विचित्र विडम्बना है कि उनके पास ही नज़रें झुकाकर स्नेह की वर्षा तो दूर एक बूँद भी नहीं होती |
 है न हम सबकी भागती ज़िंदगी की कहानी यही ! जीवन भर छाया देने वाले, हर धूप से बचाने वाले वट-वृक्ष की तरह  घर के बड़े, जिनकी नसीहतें या उनका टोकना हमें कम ही सुहाता है और हम उनको जीते जी ना जाने कितनी ही बातों के लिए दुख पहुँचाते हैं |
ना जाने कितना स्नेह होता हैं उनमें फिर भी, तुम जब उनके भरोसे अपनी संतान को छोड़कर निकल पड़ते हो अपने सफर पर तब वे उनकी मुस्कान में तुम्हारा बचपन ही ढूँढते हैं |
अपनी झुकी हुई कमर, ढली उम्र की लकीरों से भरे मुख पर शांत मुद्रा संग सांझ के समय सबके सो जाने के बाद अपने कमरे के एकांत में बिस्तर पर तकिये के नीचे अपने एक हाथ को दबा एकटक दूर खिड़की से उसी आसमां को निहारते हैं |
 या किसी वृध्द्धाश्रम में भी हों तब भी अंधेरी रात के अकेलेपन में वही आसमां और वही उनकी एकटक नज़र |
 और उनके जाते ही प्रतिवर्ष श्राद्ध ! है न कितने अचरज की बात
सबकुछ कीजिए ना  उनके जीते जी भी उनके प्रति स्नेह और श्रद्धा रखिए | यह नहीं कहती कि श्रवण हो जाइए ! किन्तु कम से कम इंसानियत को पूजिए और अपने पितरों का जब श्राद्ध कीजिए तो अंतरात्मा से आवाज़ आए कि वाक़ई मेरा जीवन धन्य हुआ जो तुमने वटवृक्ष बन हमें कभी मुरझाने नहीं दिया |
— भावना अरोड़ा “मिलन”

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।