कहानी

बिम्ब प्रतिबिम्ब (भाग 7 अंतिम)

चार दिनों बाद, दर्शन और हरमीत को भारत लौट आना था. इस बीच, वे पत्रकारों और मीडिया के कैमरों से बचने के लिए ग्लासगो चले गए, जहां हरमीत के कुछ रिश्तेदार रहते थे. ग्लासगो पंहुचते ही दर्शन को पेट में बायीं तरफ दर्द होना आरम्भ हुआ. हरमीत ने उसे एक परिचित डॉक्टर को दिखाया. सामान्यतया पेट के निचले बाएं भाग में, किडनी के सिवा, कोई संवेदन शील अंग नहीं होता. प्राथमिक जांच कर डॉक्टर ने इसे किडनी का दर्द समझ, कुछ दर्दनाशक दवाएं दीं, पर वे बेअसर साबित हुईं.
हरमीत ने मुझे फोन किया. मैंने एक दो सवाल किये और समझ आ गया कि यह दर्द अपेंडिक्स का है, जो सामान्यतया पेट में दायीं ओर पाया जाता है. यह प्रकरण भारत में होता तो हम किसी भी परिचित सर्जन के पास जाकर उसे विश्वास में लेकर शल्य क्रिया करवा लेते, लेकिन, इंग्लैंड में न तो कोई निजी चिकित्सक, बिना बीमा, शल्य क्रिया के लिए तैयार होता और न दर्शन अपने पिछले मैच के जलवों के बाद चुपचाप इलाज करवा सकता था. समस्या यह भी थी कि किसी भी अस्पताल में जाने पर भेद खुल सकता था. जांच में दर्शन का ह्रदय दायीं ओर तथा अपेंडिक्स बाईं ओर उजागर होती. फिर दर्शन के मेडिकल बीमा में पुरानी जांचों का भी अध्ययन होता और जो दर्शन की वर्तमान एनाटोमी से भिन्न होतीं. मामला पूरा उजागर हो जाता… मैंने हरमीत को बता दिया और उसे समझ में आ गया. मैंने, ग्लासगो रॉयल इनफर्मरी के एक परिचित डॉक्टर के माध्यम से अपेंडिक्स की दर्दनाशक दवाओं का प्रबंध किया, ताकि वह दर्द पर नियंत्रण कर, इंग्लैंड से बाहर निकल सके.
इधर इंग्लैंड में और भारत में भी, कई लोगों को दर्शन की अचानक खब्बू खिलाड़ी बन जाने की बात पची नहीं. लिहाजा, एमसीसी, आईसीसी और भारतीय क्रिकेट बोर्ड की एक सम्मिलित, पर गोपनीय जांच बिठा दी गयी, जिसमें दर्शन की सारी विडियो फुटेज का बारीकी से अध्ययन हो रहा था. पूरी सम्भावना थी कि जांच के अगले दौर में दर्शन को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर कुछ परीक्षणों से गुजरना पड़े. वैसे मैंने दर्शन को इस हेतु पूरा अभ्यास करवा दिया था, लेकिन मेडीकल होने पर दर्शन का भेद खुलना निश्चित था.
जांच से बचने के लिए, और अपेंडिक्स की समस्या को दूर करने के लिए हमें शेखर की शरण की जरूरत पड़ रही थी. शेखर के संस्थान का अस्पताल विश्व का सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त संस्थान था. और साथ ही वहां शेखर इस प्रकरण को किसी न किसी प्रकार सुलझा सकता था. वैसे भी, अमेरिका में क्रिकेट को लेकर लोकप्रियता न होने से दर्शन को वहां कोई जानता भी नहीं था और अमेरिका का कोई संस्थान इस जांच में शामिल नहीं था, अत: हरमीत ने दर्शन को लेकर पुन: अमेरिका शेखर के पास जाने का फैसला किया…
ग्लासगो से हीथ्रो की उड़ान में तो दर्शन को राहत रही, लेकिन दर्दनाशक दवाओं का असर कम हो जाने से हीथ्रो हवाई अड्डे पर दर्शन फिर से कराहने लगा. हरमीत ने उसे फिर से दवा की एक खुराक दी और वे दोनों विदेशी यात्रियों के लिए नियत जांच करवाने चल दिए.
आव्रजन जांच काउंटर पर दर्शन जैसे तैसे खड़ा हुआ. उसने पासपोर्ट आगे बढाया. डेस्क के कर्मचारी ने देखा और पूछा, “यू आर दर्शन सिंह? द लेफ्टी ऑफ़ लॉर्ड्स?”
दर्शन ने दर्द पर काबू पाते हुए सर हिलाया, एक मुस्कान फेंकी. अगला सवाल आया, “व्हाई आर यू गोइंग टू स्टेट्स?”
दर्शन को खीझ आने लगी लेकिन वह जानता था, एक गलत उत्तर और अटकना निश्चित… उसने धीरे से कहा, “टू मीट माय लव ऑफ़ लाइफ.” और आँख मार दी. यह तरीका यूरोप में बहुत कारगर है, इसके आगे कोई तर्क नहीं चलता. दर्शन को उसका पासपोर्ट और आगे बढ़ने की अनुमति मिल गयी.
दर्शन को लेकर जब जहाज दस हजार फीट की उंचाई तक पंहुचा, तब हीथ्रो हवाई अड्डे पर एक मेल डाउनलोड हो रहा था, जिसमें दर्शन सिंह, भारतीय नागरिक, को आव्रजन न दिए जाने के सम्बन्ध में निर्देश थे. साथ ही भारत के सभी हवाई अड्डों पर दर्शन सिंह के आगमन पर उसे रोककर रखने के लिए निर्देश जारी हो चुके थे. पर, अभी अमेरिका के हवाई अड्डों पर किसी भी प्रकार का निर्देश प्राप्त नहीं हुआ था.
नेवार्क हवाई अड्डे पर जब दर्शन और हरमीत उतरे तो शेखर उनकी आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा था. दर्शन का भेद खुलने पर सबसे बड़ी दिक्कत शेखर को ही होने वाली थी, जिसके बाद शेखर की सारी उपलब्धि एक बहुत बड़े शून्य में बदल जाती, साथ ही कई कानूनों के तहत सजा अलग से मिलती.
सबसे पहले, शेखर, दर्शन और हरमीत को लेकर हवाई अड्डे के निकट ही स्थित, अपने एक परिचित डॉक्टर के पास पंहुचा. डॉक्टर को शेखर ने फोन पर कहानी बता रखी थी कि कि दर्शन मोनोजायगोट जुड़वाँ का उदाहरण है, उसका भाई सामान्य है तथा दर्शन उसका शारीरिक उलट (situs inversus), अत: उसके भीतरी अंग भी उलटी दिशा में हैं. डॉक्टर ने अधिक पूछताछ नहीं की तथा एक दर्दनाशक दवा का इंजेक्शन देकर तुरंत ऑपरेशन करवा लेने की सलाह दी. उनकी बात पर हाँ में हाँ मिलाते हुए हरमीत और शेखर तुरंत दर्शन को लेकर भाग छूटे…
रास्ते में शेखर ने बताया, भारत से प्रकाशित सभी अखबारों में और इंग्लैंड के अखबारों में भी दर्शन के प्रदर्शन की जांच की बात हो रही है. साथ ही दर्शन का पहले ग्लासगो चले जाने और फिर तय प्लान बदल कर लापता होने से संदेह गहरा होता जा रहा था. शेखर ने हरमीत से कहा, “प्राजी, अब एक बात साफ़ है, हम ज्यादा देर इस बात को छुपा नहीं सकेंगे. क्यों नहीं हम फिर से दर्शन को मशीन में ले चलते हैं… एक मिनट में हम वापस सब पहले जैसा कर देंगे. फिर कोई भी जांच हो, कोई पकड़ नहीं पायेगा…
हरमीत लाचार थे, कभी वे दर्द से कराहते दर्शन को देखते तो कभी मोबाईल में, इन्टरनेट पर दर्शन को लेकर छप रही अखबारों की सुर्ख़ियों को देखते. वे कुछ सोच नहीं पा रहे थे, पर चाहते थे कि दर्शन को दर्द से छुटकारा मिल जाए और साथ ही उसके कैरियर पर मंडरा रहे बादल भी छंट जाएँ. हरमीत ने शेखर से हाँ कहा. शेखर ने वाहन सीधा अपनी प्रयोगशाला की ओर मोड़ दिया.
दर्शन बड़ी कठिनाई से स्पेस सूट में पैर डाल पाया, उस पर मोर्फिन का इंजेक्शन तथा दर्द का असर तारी था. उसका रक्तचाप गिरता जा रहा था. शेखर और हरमीत ने किसी तरह उसे ठीक से सूट पहना कर बेल जार के भीतर खड़ा किया. शेखर ने निर्वात पम्प आरम्भ किया और प्रक्रिया आरम्भ हो गयी… दस तक की गिनती हुई, निर्वात बना और प्लाज्मा वाली अवस्था सफलता पूर्वक संपन्न हुई, अब फिर से दर्शन अपने प्रतिबिम्ब से बिम्ब में बदल चुका था, बस घड़ी के रुकने की प्रतीक्षा थी…
बेल जार ऊपर उठने लगा, हरमीत और शेखर दोनों भागे, दर्शन बेल जार की कांच की दीवार के सहारे ही खड़ा था. बेल जार पूरी तरह ऊपर उठने तक हरमीत दर्शन को संभाल चुके थे… लेकिन दर्शन का संतुलन नहीं बन रहा था, उसका बोझ हरमीत पर ही आ गया. स्पेस सूट का हेलमेट निकाल कर शेखर ने दर्शन को थपथपाया, लेकिन दर्शन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. शेखर ने उसकी पुतलियों की जांच की, पुतलियाँ निस्तेज हो चुकीं थीं… इस पूरी कवायद का परिणाम सामने था, हरमीत ने अपने दोनों हाथ में संभाल रखा था अपने रिकार्डधारी बेटे का निष्प्राण शरीर…
..समाप्त..

— रंजन माहेश्वरी

रंजन माहेश्वरी

प्रोफेसर, इलेक्ट्रॉनिक्स राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा (राज.) - 324010. निवासः 1002, Elanza, श्रीनाथपुरम, कोटा, 324 010. ब्लॉग nbt.in/manranjan