हो संतान भगत सिंह जैसी
हो एक संतान भले,
पर हो भगत सिंह जैसी,
सच की आँधी बनकर छाए,
हो शान भगतसिंह जैसी ।
……….
फिर जन्म ले एक भगत सिंह,
ईश्वर की कृपा से,
थर-थर काँपे हाथ वो ज़ालिम,
जो किसी का आँचल खींचें ।
थम जाएँगे सब बुरे काज,
जो झलक भी देखी वैसी …
हो एक संतान भले,
पर हो भगत सिंह जैसी ..।
……..
बारूदों से फूलों सा खेला जो,
देश की आन पे हँस सब झेला जो ।
गवाह इतिहास जिसकी जयकार करे,
मातृभूमि जिसका गुणगान करे ।
कहीं न देखी आन-बान ऐसी ….
हो एक संतान भले,
पर हो भगत सिंह जैसी ..।
………….
हों जाए सफल क़ुर्बानी उसकी,
हो जाए सफल सब अमर त्याग ।
घुल जाए अगर हर बच्चे में,
वीर भगतसिंह के जज़्बे का राग ।
न धर्म लड़ेगा, न आन लुटेगी,
नफ़रत आपस की झट मिटेगी ।
जो न खुद में भगत जगाओगे,
तो वीरों की जयंती कैसी ?
हो एक संतान भले,
पर हो भगत सिंह जैसी ..।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’