कविता

हो संतान  भगत सिंह जैसी

हो एक संतान भले,

पर हो भगत सिंह जैसी,
सच की आँधी बनकर छाए,
हो शान भगतसिंह जैसी ।
……….
फिर जन्म ले एक भगत सिंह,
ईश्वर की कृपा से,
थर-थर काँपे हाथ वो ज़ालिम,
जो किसी का आँचल खींचें ।
थम जाएँगे सब बुरे काज,
जो  झलक भी देखी वैसी …
हो एक संतान भले,

पर हो भगत सिंह जैसी ..।
……..
बारूदों से फूलों सा खेला जो,
देश की आन पे हँस सब झेला जो ।
गवाह इतिहास जिसकी जयकार करे,
मातृभूमि  जिसका गुणगान  करे ।
कहीं न देखी आन-बान ऐसी ….
हो एक  संतान भले,

पर हो भगत सिंह जैसी ..।
………….
हों जाए सफल क़ुर्बानी उसकी,
हो जाए सफल  सब अमर त्याग ।
घुल जाए अगर हर बच्चे में,
वीर भगतसिंह के जज़्बे का राग ।
न धर्म लड़ेगा, न आन लुटेगी,
नफ़रत आपस की झट मिटेगी ।
जो न खुद में भगत जगाओगे,
तो वीरों की जयंती  कैसी ?
हो एक  संतान भले,

पर हो भगत सिंह जैसी ..।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।