आधुनिक युग में व्यक्ति भौतिकवादी विचारों का शिकार हो चुका है, आज हम अपने माँ-बाप की सेवा उनके जीते जी नहीं करते हैं। और उनकी मृत्यु के बाद मृत्यु भोज का बड़ा आयोजन करते हैं। मेरा मानना है कि हमें जीते जी ही अपने माँ-बाप को वह सब सुख- सुविधाएं, मान -सम्मान, देखभाल और समय देना चाहिए। माँ-बाप की मृत्यु के पश्चात, मृत्यु भोज करने का कोई औचित्य नहीं है। माना कि यह एक प्रथा है, और सदियों से चली आ रही है। ऐसा भी माना जाता है कि इसके बिना हम पित्र ऋण से उऋण नहीं हो पाते हैं। किंतु यदि व्यावहारिक दृष्टि से सोचा जाए तो हमें अपने बुजुर्गों की सेवा सुश्रुषा उनके जीवन के रहते हुए ही करनी चाहिए। उनकी मृत्यु के पश्चात यह दिखावा मात्र ही है,कि हम बड़े पैमाने पर मृत्यु भोज का आयोजन करें। सारी दुनिया को यह दिखाने का प्रयत्न करें कि हम उन्हें कितना प्रेम करते हैं। ऐसी कुप्रथा को बंद कर देना चाहिए ।क्योंकि अधिकांशत यह देखा गया है, कि गरीब व्यक्ति कर्ज लेकर भी इस आयोजन को करवाता है। यदि हम सक्षम नहीं हैं, तो समाज की कोई ऐसी बाध्यता नहीं होनी चाहिए। चंद पंक्तियाँ बुजुर्गों के लिए-
घर के बुजुर्गों का सदा करो मान-सम्मान,
जीते जी कभी नहीं करो इनका अपमान,
यही घने छायादार तरुवर हैं गृह-उपवन के,
कुटुंब के लिए इनका सानिध्य है वरदान।
— प्रीति चौधरी “मनोरमा”