रावण की ममी और दाह संस्कार का रहस्य
रामायण काल के 10000 साल बाद शोधकर्ता एस वी सुदर्शन के अनुसार रावण का दाह संस्कार नहीं किया गया और उसकी ममी श्रीलंका में मौजूद है। रणभूमि में भगवान राम के द्धारा मारे जाने के बाद रावण का शव उठाया नहीं सका था। भाई विभीषण को राज्यभिषेक की इतनी जल्दी थी कि वह शव का दाह संस्कार भी नहीं कर सका था। इसी का फायदा नागकुल ने उठाया। उन्होंने रावण का शव को वहाँ से गायब कर दिया। यहाँ तक कि रावण को जीवित करने का फैसला किया गया। रावण की ममी श्रीलंका के किले में है। यह किला वहाँ की एक पर्वतमाला में स्थित है।
श्रीलंका के पुरातत्व विभाग का कहना है कि रावण के पास पुष्पक विमान थे और उसके पञ्च विमानतल भी थे। ये सभी विमानतल इसी पर्वतमाला में ही थे। अभी भी यह माना जाता है कि रावण की ममी की रक्षा नागकुल ही करता है। कई नाग उस पर्वतमाला में है ,जो उस ममी के आसपास रहते है।
वैसे ये सबको विदित है कि ममी मिस्र में ही पाई जाती है और इस तरह की सभ्यता के दर्शन पूरब में नहीं होते। लेकिन शोधकर्ता का दावा कुछ अलग ही कहता है। रावण के मरने के बाद रावण की ज्येष्ठ पत्नी मंदोदरी सहित कई रानियाँ वहां विलाप करने पहुँच गई थी। श्रीराम ने रावण के लिए (वाल्मीकि रामायण के अनुसार ) विभीषण को स्वर्गादि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति कराने वाला अन्त्येष्टि कर्म करने की आज्ञा दी। माल्या चंदन तथा अन्य प्रकार के चंदनों द्धारा बनाई गई चिता पर रावण का शव को सुलाकर विधिपूर्वक उसका दाहसंस्कार किया गया।। शोधकर्ता द्धारा जो दावा किया गया हो सकता है ,यहाँ किसी अन्य राक्षस की ममी हो। किंतु इस कड़ी में एक जानकारी के मुताबिक ‘रावण का मृत शरीर ममी के रूप में सुरक्षित का दावा किया सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु पूज्य अबान अल धम्मानंद अनुनायक थेरा स्याम निकाय के मालवट्ट पंथ के धर्मगुरु ने। उनकी विद्धता उनके अनुसंधानों का बौद्ध जगत में सम्मान है। उनका मानना था कि प्राचीनकाल में श्रीलंका व मिस्र के मध्य निकट स्नेह संबंध थे। मिस्र की भाँति श्रीलंका में भी मृत शरीर को रासायनिक लेपों द्धारा हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखने की विधि ज्ञात थी। जो हो, मिस्र के सम्राट के साथ आए कुशल शव संरक्षकों ने श्रीलंका के रक्षकों (राक्षसों) की सहायता और श्रीराम की अनुमति से महापराक्रमी रावण के शरीर पर रासायनिक लेप चढ़ाकर उसे अमर अथवा चिरस्थाई कर दिया। उन्होंने एक विशिष्ट प्रकार के कपड़े में शव को बाँधकर पंरपरानुसार एक पूर्णतः सुशोभित-सज्जित गृह में यह ममी वालपन पर्वत के ‘रागल ‘शिखर स्थित एक गुफा में रखी हुई है। ‘रा ‘ का अर्थ है रावण और गल का अर्थ है ऊँची टेकड़ी। इसी के पास न्यूरेलिया पितृतलगल है। भिक्षु ने गुफा रेडियम जैसा प्रकाश भी देखा है, उन्होंने यहाँ सत्ता वृतांत एक सिहली दैनिक ‘दवस ‘ में प्रकाशित करवाया था। साथ ही उन्होंने अपना यह अनुभव लिखकर एक प्रति वहाँ के सरकार को भेज दी थी। भिक्षु का निष्कर्ष था कि यह शरीर रावण का था, जबकि रावण के वध के पश्चात उसके मृत शरीर का दाह संस्कार किया गया था। विभिन्न मत व शोध से रावण की ममी के दावे होते रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय को शुभकाल मानकर। शमी वृक्ष का पूजन करके जब युद्ध के लिए निकले, तब शमी वृक्ष ने विजय का उद्घोष किया था। एक मान्यता ये भी है कि विजयादशमी पर्व पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन शुभदायी व भाग्य जगाने वाला माना जाता है। भगवान श्री राम जी ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए जाने के उपरांत रावण पर विजयी प्राप्त की थी। वर्तमान में नीलकंठ पक्षी के दशहरे पर दर्शन दुर्लभ होते है।
रावण ज्ञानी, महापराक्रमी शिव भक्त था। तप से उसे अमर होने का वरदान मिला था। उसकी नाभि में अमृत था, जिसका भेद सिर्फ विभीषण को पता था। रामायण के अनुसार भेद रहस्य विभीषण ने श्रीराम को बताया। जिसके भेदने के कारण वो भगवान श्रीराम के बाण से मारा गया। विजय पर्व के रूप में विजयादशमी मनाते आ रहे हैं। कई स्थानों पर रावण की पूजा भी होती है। कागज के पुतले के रूप में रावण बनाकर उसका दहन किया जाता है।
— संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘