ग़ज़ल
ज़िंदगी, तुझको तमाशा नहीं होने देते
अब किसी खौफ़ का साया नहीं होने देते ।
आइने सच की गवाही ही सदा देते हैं
मेरे क़िरदार को हल्का नहीं होने देते ।
जो नफ़रत की शरर बनके यहाँ फैले हैं
वे कभी अपनों से रिश्ता नहीं होने देते ।
चंद सिक्कों पे जो बिकते हैं नुमायाँ के लिए
फ़ैसला वो कोई सच्चा नहीं होने देते ।
काट देते हैं दरख़्तों को कमाई के लिए
लोग पेड़ों की भी छाया नहीं होने देते ।
दिल की सीपी में मुहब्बत को बसाया मैंने
उनकी बातों की भी चर्चा नहीं होने देते ।
अब्र बनके वो मेरे साथ सदा चलते हैं
वो ‘किरण’ को कभी तन्हा नहीं होने देते ।