कविता

दिल तोड़ कर चली गई

यह कैसी मोहब्बत थी दिल तोड़कर चली गई,
हम रह गए अकेले वह छोड़ कर चली गई।
वादा किया था उसने ना छोड़कर मैं जाऊंगी,
गर छोड़कर गई तो फिर लौट कर मैं आऊंगी।
जब थी पड़ी जरूरत मुंह मोड़ कर चली गई,
हम रह गए अकेले वो छोड़ कर चली गई।
आता है याद हमको उसका यूं मुस्कुराना,
आता है याद हमको यूं रूठ कर मनाना।
पर कैसी बेबसी थी हड़होड़ कर चली गई,
हम रह गए अकेले वो छोड़ कर चली गई।
दिल मे थे अरमान कि पलकों में मैं बिठाऊं,
मैं जिंदगी की खुशियां तेरे ऊपर लुटाऊं।
तेरे गम में है पड़े हम दम तोड़ कर चली गई,
हम रह गए अकेले वह छोड़ कर चली गई ।

— प्रशान्त मिश्रा “प्रसून”

प्रशान्त मिश्रा प्रसून

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