गीत/नवगीत

संवाद होना चाहिए

भावनाओं का सरल ,अनुवाद होना चाहिए
भाव हों मन के मुखर, संवाद होना चाहिए।
भाव जो ना व्यक्त होते,शूल से चुभते सदा हैं
ज्यों अधूरे लक्ष्य निद्रा से सदा देते  जगा हैं
है उचित तब तक यहां,जब मौन का भी मान हो
अन कहे हर भाव का,होता नहीं अपमान हो
इसलिए हर मौन का,सिंहनाद होना चाहिए
भाव हों मन के मुखर, संवाद होना चाहिए…..
है समय कैसा मनुज की,घुट रही संवेदनाएं
मृत है क्यों अनुभूतियां,क्यों मौन है सब वेदनाएं
तोड़ कर हर एक बंधन,भाव सारे व्यक्त हों
हृदय की कोई भी पीड़ा,ना कभी अव्यक्त हों
हर मनुज अवसाद से आज़ाद होना चाहिए
भाव हों मन के मुखर ,संवाद होना चाहिए…..
है मिला जीवन तो नित,बाधा भी पथ में आएंगी
धैर्य,साहस,त्याग का ये, पाठ भी सिखलाएंगी
देख इनको ना कभी, मन में कोई अवसाद हो
मन का मस्तिष्क से फिर ना कभी प्रतिवाद हो
घोर हो कितना तिमिर,ना विषाद होना चाहिए
भाव हों मन के मुखर, संवाद होना चाहिए….
देख पथ के कंटकों को,ना मनुज पीछे हटे
ना तनिक से कष्ट से,साहस भुजा का ही घटे
दुःख निराशा की गहन छाया में कोई ना पले
फिर से इन अवसाद की,लपटों में कोई ना जले
आज का हर एक मनुज,प्रह्लाद होना चाहिए
भाव हों मन के मुखर, संवाद होना चाहिए….।
— पवन सोलंकी

पवन सोलंकी

सुमेरपुर,पाली, राजस्थान