विजय पर्व
कौशल्या महतारी ने, गाए मंगल गीत ।
हर्षे सब जन सुनई कें, भई राम की जीत ।।
बोली हँस कें लाल सें, कुमति गई रे हार।
सुत मेरे ने कर दियो, दुष्टन को संहार ।।
प्रति-उत्तर में राम ने, हँसत दिए कर जोड़।
मैं रावण खौं ले गई, जा को का है तोड़ ।।
रावण के पांडित्य सौ, प्रवीण भयो न कोय ।
ज्ञान सबै मिट्टी भयो, मैं भींचे सब खोय ।।
विजय पर्व पर प्रण धरो, अहं झूठ दो त्याग,
राम-राज तब ही बने, जाय बुराई भाग ।।
— भावना ‘मिलन’