नारी का संघर्ष: तब, कल और आज!!
कभी माँ, कभी बहन, कभी भाभी, तो कभी नानी और न जाने कितने रिश्तों को कई रूपों में युगों – युगों से नारी निभाती आ रही है। हर देशकाल और परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए नित्य संघर्ष करती नारी को हमारी सनातन संस्कृति में देवी के रूप में पूजनीय माना गया है। मनु स्मृति में लिखा गया- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।
‘जिस घर में नारी सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं जहाँ नहीं होता वहाँ सब निष्फल हो जाता है।
सतयुग में नारी का स्वरूप पूजनीय रहा, किंतु जब कलयुग का आगमन हुआ तो युग परिवर्तन के साथ-साथ नारी की स्थिति और स्वरूप में भी परिवर्तन आया। उसे देवी, गृह लक्ष्मी और पूजनीय न समझकर पुरुष समाज की दासी, कमजोर, दूसरों पर आश्रित रहने वाली और भोग की वस्तु समझा जाने लगा। जिससे कहीं न कहीं उसके खुद के स्वाभिमान और अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा। लेकिन समय अथवा युग कोई भी क्यों न हो, एक नारी ने अपने अस्तित्व को कई संघर्षों के बाद भी मर्यादा, कर्मनिष्ठा, एक नियत सीमा और रिश्तों का पालन करते हुए बनाए रखकर अपना परिचय समय-समय पर देकर खुद को साबित किया है।
आज वर्तमान परिस्थितियों में जहां नारी के परिवेश में परिवर्तन से उसके अस्तित्व में भी परिवर्तन आया है, अर्थात जहां नारी को एक मर्यादित, कर्मनिष्ठ, रिश्तों को निभाते हुए माना गया, वहीं उसकी छवि आधुनिक काल के इस दौर में कहीं न कहीं धूमिल सी हो गई है। अब नारी को गैर – जिम्मेदार, लापरवाह, बेशर्म, संस्कारहीन और संस्कृति का पालन न करने वाली माना जाने लगा है। यहां तक कि सामाजिक दृष्टि के अंतर्गत नारी परिवार को जोड़ने वाली नहीं, बल्कि तोड़ने वाली कही जाने लगी है।
किंतु यह पूरा सत्य नहीं है, नारी ने अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए युगों से संघर्ष किया है क्योंकि, आज की परिस्थितियां इसके विपरीत हैं। एक बालिका से लेकर एक नारी तक का सफर ओर अधिक चुनौतीपूर्ण और संघर्ष पूर्ण हो गया है। वर्तमान में आधुनिक दौर के चलते एक बालिका, से एक नारी तक के कंटीले सफल में उसे पता है कि, उसका संघर्ष का सफर आसान नहीं है, फिर संघर्ष चाहे घर में हो, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस अथवा कहीं और। उसे यह भी पता है कि, उसके पास खुद को साबित करने के अवसर भी सीमित हैं, जिन्हें वह जाने नहीं दे सकती। इसलिए प्रत्येक स्थान और स्तर पर खुद को साबित करने के लिए अथक प्रयास करती है। क्योंकि सत्य यही है कि एक नारी के पास पुरुष की अपेक्षा विकल्प ही सीमित है। आधुनिकता के दौर से नारी ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज, देश और विश्व भी प्रभावित हुआ है। ऐसी स्थिति में केवल नारी की ओर ही इंगित करना उचित नहीं।
सत्य यह भी है कि, नारी की स्थिति में समय के साथ बहुत बदलाव और विकास भी हुआ है। बहुत से स्थानों और स्तरों में जहां परिवर्तन हुआ है, जिसके चलते आज की नारी को समाज में सबके साथ चलते देख रहे हैं। कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जहां नारी ने दखल न किया हो। यहां तक कि, जहां पर बालिका और नारी का रात में घर से निकलना भी एक चिंतनीय विषय है,वहीं कुछ सरकारी पदों और स्थानों पर रात्रि में नारी को अपना कर्तव्य निभाते देखा जा रहा हैं।
अतः नारी का संघर्ष चलता रहा है, और चलता रहेगा। इस तथ्य को दया की दृष्टि से न देखकर, यह देखना और समझना चाहिए कि, पूरे जगत और ब्रह्मांड में केवल नारी ही ईश्वर की बनाई वह प्रतिमा है, जो संघर्ष करने, खुद को साबित करने, समाज का निर्माण करने, एक नये जीवन को जन्म देने आदि ऐसे महान कार्यों को करने में सक्षम है, जिन कार्यों को नारी के अलावा कोई अन्य नहीं कर सकता। इसलिए नारी का अस्तित्व और उसका संघर्ष अपने आप में ही अतुल्य और अद्वितीय है।
लक्ष्मी सैनी