सिनेमा असंभव को संभव बनाने का नाम है रजनीकांत
दिल्ली में विज्ञान भवन में गत दिनों आयोजित 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा सिनेमा जगत के ‘थलाइवा’ अभिनेता और दक्षिण भारत के सुपरस्टार रजनीकांत को 51वें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस अवसर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने रजनीकांत को 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में भारत का सर्वाेच्च फिल्म सम्मान ‘दादासाहेब फाल्के पुरस्कार’ प्राप्त करने पर बधाई देते हुए कहा कि रजनीकांत न केवल एक महान् प्रतीक हैं बल्कि भारतीय सिनेमा की दुनिया के लिए एक संस्था हैं। रजनीकांत को यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा इसी वर्ष एक अप्रैल को की गई थी। 70 वर्षीय रजनीकांत ने अपना यह पुरस्कार अपने गुरू के. बालाचंद्र, अपने भाई सत्यनारायण राव तथा अपने बस ड्राइवर दोस्त राजबहादुर को समर्पित किया। दरअसल रजनीकांत को एक बस कंडक्टर से ग्लैमर की दुनिया में पहुंचाने का बहुत बड़ा श्रेय राजबहादुर को जाता है और रजनीकांत इस बात को वर्षों बाद भी नहीं भूले।
वर्ष 2019 के लिए भारतीय सिनेमा के इस सर्वश्रेष्ठ सम्मान के लिए रजनीकांत के नाम का चयन पांच ज्यूरी सदस्यों आशा भोंसले, मोहनलाल, विश्वजीत चटर्जी, शंकर महादेवन तथा सुभाष घई ने एकमत से किया था। सिनेमा जगत के किसी एक कलाकार को प्रतिवर्ष दादासाहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना जाता है और विजेता को डायरेक्टरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल्स द्वारा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में स्वर्ण कमल, शॉल तथा 10 लाख रुपये नकद पुरस्कार से नवाजा जाता है। अभी तक रजनीकांत सहित कुल 51 हस्तियों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है। रजनीकांत करीब पांच दशकों से फिल्म जगत के बेताज बादशाह रहे हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा, कड़ी मेहनत और लगन से लोगों के दिलों में जगह बनाई है और आज फिल्म जगत में सूरज की तरह चमक रहे हैं। तमिलनाडु में तो उनके प्रशंसक उन्हें अपना ‘भगवान’ मानते हैं, जहां आदर से उन्हें ‘थलाइवा’ (नेता) कहा जाता है।
रजनीकांत की किसी नई फिल्म की घोषणा हो या उनका जन्मदिन, वह अवसर उनके प्रशंसकों के लिए त्यौहार जैसा होता है। अक्सर देखा जाता रहा है कि कैसे उनके प्रशंसक उनके पोस्टरों को दूध में नहलाते हैं, कुछ उनके कटआउट पर फूलमालाएं लादते हैं तो कुछ मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करते हैं। उनकी फिल्म रिलीज होते ही उसका पहला शो देखने के लिए कैसे सिनेमाघरों के बाहर रात से ही दर्शकों की कतारें लगती रही हैं, ये तस्वीरें भी अक्सर देखी गई हैं। उनकी सफलता को देखते हुए उनके बारे में कहा जाता है कि असंभव को संभव बनाने का नाम ही रजनीकांत है। रजनीकांत ने अभिनय की अलग शैली तथा अदाकारी का नया स्टाइल विकसित कर उसे इस कदर लोकप्रिय बनाया कि वह ‘रजनीकांत स्टाइल’ के नाम से विख्यात हो गया। सिगरेट और चश्मे को अपने ही अंदाज में उछालने और पकड़ने की उनकी अदाकारी सिनेप्रेमियों के बीच उनकी विशिष्ट पहचान बन गई। उन्हें वास्तविक जीवन में कभी भी कृत्रिम तरीके से हुलिया नहीं बदलने और कम होते बालों को भी कभी नहीं छिपाकर सहजता से रहने के लिए जाना जाता है।
फिल्मी दुनिया में एक्शन हीरो के रूप में उभरने से पहले रजनीकांत बेंगलुरू में कुली और फिर बस कंडक्टर का काम करते थे लेकिन बस में उनका टिकट काटने का स्टाइल बिल्कुल अनोखा था। अपने उसी अंदाज को लेकर वे लोगों के बीच काफी तेजी से लोकप्रिय होने लगे। उनकी उसी खासियत को भांपकर उनके ड्राइवर साथी राजबहादुर ने उन्हें फिल्मों में अभिनय के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि इस कार्य में उनका हरसंभव सहयोग भी किया। राजबहादुर द्वारा प्रोत्साहित करने पर उन्होंने मद्रास फिल्म संस्थान से अभिनय का पाठ्यक्रम किया और आखिरकार एक तमिल फिल्म प्रोड्यूसर ने रजनीकांत को अपनी फिल्म में मौका दे दिया और चॉकलेटी चेहरा नहीं होने के बावजूद रजनीकांत ने अपनी एक्टिंग से बड़े पर्दे पर ऐसा शमां बाधा कि करोड़ों दर्शक उनके अभिनय के मुरीद हो गए। आज वे देश के सर्वाधिक महंगे फिल्मी हीरो में से एक हैं, जिन्होंने वर्ष 2019 में एक फिल्म में काम करने के लिए 81 करोड़ रुपये पारिश्रमिक लेकर रिकॉर्ड बनाया था।
निम्न मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में 12 दिसम्बर 1950 को जन्मे रजनीकांत के कैरियर की शुरूआत वर्ष 1975 में के. बालाचंद्र द्वारा निर्देशित तमिल फिल्म ‘अपूर्व रंगांगल’ से हुई थी। उस फिल्म में कमल हासन और श्रीविद्या जैसे बड़े सितारे मुख्य भूमिका में थे। कैरियर के शुरूआती दौर में उन्होंने फिल्मों में कई नकारात्मक किरदार निभाए। उसके बाद उन्होंने ‘कविक्कुयिल’, ‘सहोदरारा सवाल’ (कन्नड) और ‘चिलकम्मा चेप्पिंडी’ (तेलुगू) में सकारात्मक पात्रों का अभिनय किया। 1976 में जाने-माने तमिल फिल्म निर्देशक बालाचंद्र की फिल्म ‘मुंडरू मुडिचू’ से उन्हें सफलता मिली और फिल्म ‘भुवन ओरु केल्विकुरी’ में पहली बार हीरो की भूमिका में नजर आए। ‘बिल्लू’ नामक उनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट होने के बाद वे खासतौर से लोगों की नजरों में आए। 1980 के आखिर तक रजनीकांत दक्षिण भारत की सभी भाषाओं की फिल्मों में काम कर तमिल सिनेमा में अपना नाम स्थापित कर चुके थे। ‘बिल्लू’ के अलावा ‘मुथू’, ‘बाशहा’, ‘शिवाजी’, ‘एंथीरन’, ‘काला’ इत्यादि कई सुपरहिट फिल्मों में काम कर वे दक्षिण भारत के बड़े स्टार बन गए। वर्ष 1983 में उन्होंने अपनी पहली हिन्दी फिल्म ‘अंधा कानून’ से बॉलीवुड में भी कदम रखा। उसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार सफलता की सीढि़यां चढ़ते गए। बॉलीवुड में उन्होंने ‘हम’, ‘अंधा कानून’, ‘भगवान दादा’, ‘आतंक ही आतंक’, ‘चालबाज’, ‘बुलंदी’ इत्यादि कई सुपरहिट फिल्में दी।
रजनीकांत आज दक्षिण भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े स्टार कहे जाते हैं और उनकी तुलना 20वीं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से की जाती है। उनकी खास तरह की डायलॉग डिलीवरी, अभिनय का चमत्कारिक अंदाज, परोपकारिता, अपार लोकप्रियता और करिश्माई व्यक्तित्व के बावजूद राजनीति में कदम रखने की हिचक जैसी अनेक बातें उन्हें असाधारण बनाती हैं। यूनिक डायलॉग डिलीवरी और बेबाक राजनीतिक वक्तव्यों के लिए विख्यात हो चुके रजनीकांत अपनी अपार लोकप्रियता के कारण ही कुछ वर्षों से राजनीति में पदार्पण करने की हिम्मत जुटा रहे थे और इसके लिए उन्होंने अपना एक संगठन भी बनाया था लेकिन खराब सेहत के कारण पिछले साल उन्होंने चुनावी राजनीति से पैर पीछे खींच लिए। उन्होंने 2002 में थ्रिलर फिल्म ‘बाबा’ बनाई थी, जिसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था लेकिन जापान में वह फिल्म खूब चली। विगत कुछ वर्षों में एस शंकर, के एस रविकुमार, पा रंजीत, एआर मुरुगदास जैसे नए जमाने के फिल्म निर्देशकों ने ‘शिवाजी: द बॉस’, ‘लिंगा’, ‘काला’ और ‘दरबार’ जैसी फिल्मों में अपने हिसाब से रजनीकांत के अभिनयी जादू को बाहर निकाला। इस समय वह ‘अन्नाती’ फिल्म पर काम कर रहे हैं। भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए जाने से पहले उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण सम्मानों के अलावा फिल्म जगत के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं और 31 वर्षों से साहित्य एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं)
— योगेश कुमार गोयल