दीपावली को दीप कुछ जलाएं,
इस धरा से, सारे अँधेरे मिटाएं ।
अहंकार जैसे कितने ही दानव-
आकर बस गए, हृदय में हमारे-
अन्दर या बाहर सुरक्षित नहीं हैं-
अपने-पराये सब, शत्रु हैं सारे ।
रक्षा हिट ऋषियों की राम जैसे
वीरता, आदर्श हम भी अपनाएं ।
जुआ-नशा सब गलत बात हैं ये
इस पावन पर्व को पावन बनाओ,
मस्तिष्क में, ठहरा है तम हमारे-
कोई तो दीपक यहाँ भी जलाओ ।
ये जीवन सुखों से परिपूर्ण होगा-
नियमित जो, राम का नाम गाएं ।
— प्रमोद गुप्त