हे ईश्वर !
हे ईश्वर ! मैं निज स्वार्थ को मिटा दूं ।
इस दुनिया में प्रेम का दीप जला दूं ।।
लेकर तेरा ही नाम, नेक कर्म करूं ।
दुनिया में झमेले बहुत, हरगिज न डरूं ।।
तेरा ही पावन नाम हृदय में बसाए रखूंगा ।
संसार की मोह-माया में कभी न फसूंगा ।।
अब बस तुझी से लगी है आस मेरी ।
पतझड़ रुपी जीवन में कृपा बरसेगी तेरी ।।
मेरी सांस-सांस सिमरन करती तुमको ।
मेरा रोम-रोम पुलकित, दर्शन देदो मुझको ।।
हे ईश्वर ! मैं निज स्वार्थ को मिटा दूं ।
इस दुनिया में प्रेम का दीप जला दूं ।।
हिचकोले लेती मेरी टूटी-फूटी नैया ।
मेरे प्रभु तुम्हीं हो इसके खिवईया ।।
क्षण – क्षण डूब रहा, पार लगाओ ।
प्रभु चरणों का दास, मुझे बचाओ ।।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा