ग़ज़ल
बात दिल की बता गईं आँखें
ख़्वाब कितने दिखा गईं आँखें।
दिल में जब भी ग़ुबार उठ्ठा है
आँसुओं से नहा गईं आँखें ।
याद माज़ी की जब भी आई है
हँसते दिल को रूला गईं आँखें ।
आ गया सच भी सामने अब तो
रूख़ से पर्दा हटा गईं आँखें ।
जाने कैसी कशिश समाई थी
दिल को अपना बना गईं आँखें ।
सारी दुनिया उन्हीं में दिखती है
मुझको इतना लुभा गईं आँखें ।
है ‘किरण’की दुआ में शामिल वो
ज़ुस्तज़ू में समा गईं आँखें ।