कविता

ख्वाब या हकीकत

हंसते रहे जमाने को
दिखाने के लिए।
मेरे आंसू थे अकेले में
बहाने के लिए।
दुख छिपाने के
खातिर हंसते रहे।
सारे अरमान कोने में
सिसकते रहे।
पति और बच्चे
देते रहे झूठा दिलासा।
यह दिल था बस उनके
प्यार का प्यासा।
कब किसी को हमारी
परवाह रही।
थी पराई हमेशा पराई रही।
शोर था वेलेंटाइन,
तो कहीं नए साल का।
औरत को खुश रखने का
किसी न ख्याल था।
दोस्ती यारी में सब
अपना दिल बहलाते रहे।
औरत की खुशियों को
झुठलाते रहे।
सब कहते हैं अब
जमाना बदल गया है।
हम कहते हैं चेहरा वही है
बस पर्दा बदल गया है।
— शहनाज़ बानो

शहनाज़ बानो

वरिष्ठ शिक्षिका व कवयित्री, स0अ0,उच्च प्रा0वि0-भौंरी, चित्रकूट-उ० प्र०