कभी वक्त तो कभी जिंदगी मयस्सर नही।
हम है ऐसे नामुराद,कोई खुशी मयस्सर नही।
जितना तुम्हें चाहिए, मुझ से मेरा वक्त,
के उतना तो खुद मुझे भी मयस्सर नही।
हम ने उसे फ़कत तस्वीरों में ही देखा है,
जिंदा रहे धूप के साये में, चाँदनी मयस्सर नही।
जिस का जिक्र हो कभी, यारों की अंजुमन में
ऐसी रौनकें, ऐसी कोई खुशी मयस्सर नही।
जो सजाते रहे है कागजी फूलों से गुलदान,
उन झूठी आँखों को कोई हँसी मयस्सर नही।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ‘राजसागर’