रेजांग-ला के वीर अहीरों का अप्रीतम शौर्य
(रेजांगला दिवस पर विशेष)
दक्षिणी हरियाणा के वीरों की खान के नाम से प्रसिद्ध अहीरवाल क्षेत्र हमेशा से अपनी पराक्रम वीरता और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध रहा है इसी क्षेत्र के वीर यादव नौजवानों ने 18 नवंबर 1962 को चुशूल घाटी की रेजांगला पोस्ट पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में भारत भूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था.जब रात 3:30 बजे चुशूल घाटी यानी रेजांगला में भारतीय रणबांकुरे चीनी हमला का मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था.यह लड़ाई शून्य से 35 डिग्री नीचे के तापमान में हमारे जवानों ने बिना बर्फ से बचने वाले ड्रेस के लड़े थे.उनके पास लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त गोला-बारूद भी नहीं थे.वही चीनी सेना आर्टिलरी सपोर्ट के साथ आगे बढ़ रही थी.इस लड़ाई को आखिरी आदमी आखिरी गोली आखरी सांस के नाम से भी याद किया जाता है.ऐसा इतिहास में दर्ज है 124 भारतीय सैनिकों ने 1700 चीनियों की लाश बिछा दी थी. यही एकमात्र इतिहास का युद्ध था जिसमें दुश्मन ने भी भारतीय सैनिकों की वीरता की तारीफ किया था. दुनिया के अफसरों को ट्रेनिंग के दौरान रेजांगला के बारे में पूरा पाठ पढ़ाया जाता है. भारत को इस युद्ध की कहानी शायद पता तक न चलता अगर मरते समय तेरहवीं बटालियन कुमायूं के अगुआ मेजर शैतान सिंह भाटी ने मानव कैप्टन रामचंद्र यादव को पूरी जानकारी देने के लिए सेना के मुख्यालय ना भेजा होता है कौन जानता था कि वह 124 जवानों में 119 अहीर थे.कहा जाता है भारतीय सेना के रेसलर और नायक राम सिंह यादव राइफल की गोली समाप्त होने के बाद गोली वर्षा के बीच चीनी सैनिकों के बीच पहुंचकर उनसे भिड़ गए और वीरगति से पूर्व से कई चीनी सैनिकों का काम तमाम कर दिया था. चीनी सैनिकों ने हमारे वीर अहीर शेरों की लाशों को कम्बल से ढककर उनके सिर के साथ उनकी बन्दूक को खड़ा किया और एक कार्ड पर “बहादुर” लिख कर उनके सीने पर रख दिया और फिर रेडियो पीकिंग से खबर दी की चीन का सबसे ज्यादा नुक्सान रेजांगला में हुआ.
विश्व का सैन्य इतिहास यूं तो वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है, परंतु रेजांगला की गौरवगाथा हर लिहाज से शहादत की अनूठी दास्तां हैं.बिना किसी तैयारी के हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र के वीर जवानों ने 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.यह दुनिया में अपनी तरह का एक अलग नजीर पेश करता है जहां मुट्ठी भर सैनी कौन है पूरी पलटन को पलट कर रख दिया था.यहां के वीरों के जज्बे का ही परिणाम था,कि चीन सीज फायर करने को मजबूर हो गया था.बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर भारतीय जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मौत के नींद सुला कर भारत की अस्मिता की लाज रख ली थी.इस लड़ाई में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के कुल 124 जवान शामिल थे, जिनमें से 114 शहीद हो गये थे. शहादत देने वालों में अधिकांश जवान अहीरवाल क्षेत्र के थे.
इस युद्ध की खास बात यह थी कि चीनी सैनिक जहां पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों व बर्फीले मौसम से पूरी तरह अभ्यस्त थे, वहीं मैदानी क्षेत्रों से गये भारतीय सैनिकों के लिए परिस्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थी.
ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया.नजदीक की दूसरी पहाडि़यों पर मोर्चो संभाल रहे अन्य सैनिकों को रेजांगला पोस्ट पर चल रहे इस ऐतिहासिक युद्ध की जानकारी तक नहीं थी.
लद्दाख की बर्फीली, दुर्गम व 18 हजार फुट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी और उनके पांव उखड़ गए इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये, तब तक उन्होंने चीन के आगे बढ़ने के मंसूबों पर पानी फिर दिया था.
पीकिंग रेडियो ने भी तब केवल रेजांगला पोस्ट पर ही चीनी सेना की शिकस्त स्वीकार की थी. रेजांगला पोस्ट पर दिखाई वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया था साथ ही इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना पदक व एक को मेंशन इन डिस्पेच से सम्मानित किया गया था.13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था.भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन के जवानों को एक साथ इतने सम्मान नहीं प्राप्त हुए हैं.
रेजांगला युद्घ में शहीद हुए सैनिकों में मेजर शैतान सिंह पीवीसी जोधपुर के भाटी राजपूत थे,जबकि नर्सिग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) सोनीपत के जाट परिवार से थे.वही कंपनी का सफाई कर्मचारी पंजाब का रहने वाला था.इनके अलावा शेष सभी जवान अहीर जाति के थे.इनमें से भी अधिकांश हरियाणा के रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़ व सीमा से सटे अलवर जिले के रहने वाले थे. कहां तो ऐसा जाता है जब उनके पास गोलियां खत्म हो गई तो जवानों ने हथियारों का इस्तेमाल लाठियों के रूप में किया और रेजांगला पोस्ट पर दुश्मन का कब्जा होने नहीं दिया.रेजांगला के वीर अहीर सैनिकों के सम्मान में आज भी वहां स्मारक बना हुआ है जहां सभी सैनिकों के नाम संगमरमर पर खुदा हुआ है.देश के इन वीर सपूतों को सादर नमन.
— गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम