बचपन के पल
कागज़ के जहाज़ बचपन मे खूब उड़ाये थे।
कागज की नावों को पानी मे खूब तैराये थे।।
बात बात पर जिद करना,और अड़े रहना।
न जाने ये हमको किसने सिखलाये थे।।
पापा के कंधों पर मीलों दूर सफर करना।
मम्मी की गोदी में हमने लाड़ प्यार पाये थे।।
त्योहारों पर नये कपड़े लाना और इतराना।
दोस्तों में अपना इम्प्रेशन जमाये थे।।
गिल्ली डंडा सतोलिया खो खो में वक़्त बिताये थे।
सोलहसार अष्टा चंगा खेल में अव्वल आये थे।।
टोली बना मित्रों की शादी में डांस घुमाये थे।
नागिन डांस और घूमर में नाम कमाये थे।।
खेतों की पगडंडियों पर सरपट सरपट दौड़े थे।
बच्चे थे हम जब भी भाई कभी न खटपट करते थे।।
ईमली तोड़ कितनी ही खा लेते खट्टी कभी न कहते थे।
कदम्ब की डालों पर भैय्या खेल रोज ही खेलते थे।।
— डॉ. राजेश पुरोहित