रिश्तो का पतझड़
समय की भी क्या विडंबना है जहां बचपन हम भाई बहनों की लड़ाई झगड़ा करते है और फिर प्रेम के साथ मिलते है… वही भाई-बहन बड़े होकर अलग हो जाते हैं। वह बचपन का प्रेम कहां खो जाता है पता ही नहीं चलता.। एक दूसरे की चीजों को हड़पना ही समझ में आता है। अब तो रिश्तो में पतझड़ आ रहा है एक एक रिश्ता पेड़ की पत्तियों की तरह गिरते जा रहे है बिछड़ते जा रहे…।जिसमे प्यार नहीं होता….।
नितिन और राहुल भी अपने पिता जी के बनाएं घर में रह रहे थे दोनों की शादी हो चुकी थी,हरिदयाल जी ने रिटायरमेंट के मिले पैसे से घर बनाया था, हरिदयाल जी ने घर को बहुत प्यार से बनाया था इस घर की एक एक ईंट उनकी मेहनत और पसीने की कमाई थी उन्होंने हमेशा संस्कारों की दुहाई दी और अपनी परवरिश की हमेशा बढाई की,पर क्या पता था की एक दिन उनके ही बच्चे आपस में लड़ने झगड़ने लगेंगे.।
हरिदयाल जी वैसे तो पहले से ही दूरगामी थे उन्होंने अपने मकान को दो पार्ट में बनवाया था एक छोटे बेटे ने नितिन और बड़े बेटे राहुल के नाम से, पर उनके जीते जी अलग होने का तो सवाल ही नहीं उठता, घर के मनमुटाव को हरिदयाल जी के सामने ना लाया जाता, हरिदयाल जी की दिनचर्या समय के साथ बीत रही थी, उन्हें अपनी परवरिश पर भरोसा था कि उनके बच्चे कभी आपस में नहीं लड़ेंगे.। वह बुजुर्गों की संगोष्ठी में बैठते तो अपने परिवार की बढ़ाई करते, बाकी बुजुर्ग भी उनकी सराहना करते ना थकते थे। हरिदयाल जी ने अपने परिवार में कुछ नियम और कानून बना रखे थे ।
नितिन और राहुल दोनों की पत्नियों की आपस में ना पटती थी, शिखा और रुचि दोनों आपस में मन भारी किए ही एक दूसरे को देखती, इनका बस चले तो वह एक दूसरे को देखना ना चाहे वह अपने पतियों को ताने मारती, नितिन और राहुल पिता जी से बहुत डरते थे, या यूं कह लें हरिदयाल जी के संस्कारों का असर था, समय धीरे-धीरे बीत रहा था, पर घर में संस्कारों की दुहाई देते देते रिश्ते अंदर से खोखले होते जा रहे हैं, कोई एक दूसरे को पानी देने वाला ना था।
नितिन और राहुल का कमरा ऊपर था हरिदयाल जी नीचे रहते थे उनके घुटनों में दर्द होने के कारण सीढ़ियां नहीं चढ़ते थे, एक दूसरे की देखा देखी हरिदयाल जी तक अब टाइम से ना खाना पहुंचता ना चाय, हरिदयाल जी अपने ही घर में एक पुरानी टूटी कुर्सी के सामान पड़े रहने लगे, सर्विस के समय जो उनकी घर में शाख थी वह अब खत्म हो चुकी थी, हरिदयाल जी अब बीमार रहने लगे कहीं ना कहीं वह चिंता से ग्रसित थे, जो उनको खाए जा रही थी जिन संस्कारों की वह दुहाई देते थे वह शायद अब खयालों में थी हरिद्वार जी बहुत दुखी रहने लगे,हरिदयाल जी ने अब घर से निकलना बंद कर दिया था, एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो जाती हैं हार्ट अटैक से..।
अब काम क्रिया के लिए भी दोनों भाइयों में खींचातानी शुरू हो जाती है समय की विडंबना देखिए जिसका सब था उसके अंतिम क्रिया में भी भाइयों ने अपना लड़ना ना छोड़ा किसी तरह पंडितों को खिलाकर क्रिया का काम संपन्न किया..।
जिस पिता ने इतनी दुआएं दी अपने बच्चों को, और संस्कारों की कितनी बढ़ाई कि उसका ये अंत।
अब नितिन और राहुल को रोकने वाला कोई ना था नितिन और राहुल की आपस में तो रोज ही लड़ाई होती, उनके काम पर जाने के बाद शिखा और रुचि भी आपस में लड़ जाती यह सिलसिला अब आए दिन का हो गया, अब बंटवारे की बात चलने लगी, यह बात रिश्तेदारों तक पहुंची, हरिदयाल जी की बड़ी बेटी सुधा और उसके पति दिनेश नितिन और राहुल से मिलने के लिए आते हैं समझाते हैं कि लोग क्या कहेंगे पिताजी ने तो हमेशा अपने संस्कारों को सर्वोपरि रखा तुम लोगों ने उनके मरने के बाद उनकी इज्जत को धो डाला, पर नितिन और राहुल किसी भी बात पर तैयार नहीं थे,सुधा और दिनेश बात कर करके चले जाते हैं जाते जाते बोलते हैं थोड़ा सोचो तुम दोनों, ज़ब राहुल और नितिन ने पिताजी का मान ना रखा तो वह बहन का क्या रखते।
फिर एक दिन राहुल और नितिन ने सुधा दी और दिनेश जीजा जी को बुलाकर बंटवारे की बात रखी सब लोग आंगन में इकट्ठा हो चुके थे, सब एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे,नितिन की बहुत ही बेज्जती हुई घर में नितिन की पत्नी रुचि वह भी अपनी एक एक बात को रखती जा रही थी, जो जलता है वही तड़पता है नितिन और रुचि के साथ नाइंसाफी बहुत दिनों से चल रही थी, वह नितिन और रुचि अब एक होने के लिए तैयार ना थे, इधर राहुल और सुधा को सारी कमियां सिर्फ नितिन और रुचि में ही नजर आ रही थी, सुधा और दिनेश भी नितिन और रुचि को समझाने में लगे थे, रुचि ने बोला क्या पिताजी अम्मा के मरने के बाद सारा कुछ बड़े भाई का होता है छोटे का कुछ नहीं होता। पर रुचि की बात को सुनता कौन, रुचि बोले जा रही थी और रोए जा रही थी मां के गहने, मां का बॉक्स,मां का कमरा, सब बड़े भाई का होता ,तो हमारा क्या है? सुधा दी अभी भी आप एक होने के लिए कह रही हैं, सुधा जी ने बोला बड़े भैया सारा काम कर रहे हैं तो वहीं ना रखेंगे, नितिन और रुचि तिलमिला जाते हैं रुचि ने सुधा दी जैसी दीवार पर अब अपना सर फोड़ने की कोशिश ना कि, वह चुप होकर अपने कमरे में चली और जाते-जाते बोलती गई अब मैं इन लोगों के साथ नहीं रह सकती, इधर सुधा दी भी गुस्से में बोली ठीक है तो इस घर के तीन हिस्से होंगे एक बड़े भैया का एक तुम्हारा और एक मेरा.
रुचि वापस पलट कर नीचे आती है और बोलती है कैसा आप का हिस्सा
सुधा पिता की प्रॉपर्टी में एक हिस्सा बेटी का होता है रुचि गुस्से से लाल होती नहीं बोली यह मकान मेरे नाम से है इस मकान में मैं एक फूटी कौड़ी भी किसी को ना दूंगी. सुधा दी का गुस्से से तिलमिला जाती हैं, रुचि वहां से निकलकर अपने कमरे में चली जाती है राहुल और उनकी पत्नी शिखा सबकी नजरों में अच्छा बनने की कोशिश करते हैं सुधा दी अब बड़े भाई के यहां से आना-जाना रखती हैं पार्टियां चलती हैं पर छोटे भाई को नहीं पूछती.।
बटवारे की बात तो हो गई पर अभी बटवारा ना हुआ, बड़े भाई मटकते चटकते अपनी बहन के घर आना जाना हो रहा था शिखा भी ऐसे बन ठन के निकलती जैसे वह रुचि को चिढा रही हो .।
क्या सब कुछ लेकर भी लोग अच्छे बने रहेंगे. और सब कुछ सहने के बाद बोलने वाला बुरा हो जाएगा,
रुचि और नितिन ने भी अपना बिजनेस अलग कर लिया रुचि के मायके से उसे मदद मिलने लगी नितिन ने अपना बिजनेस खड़ा किया पर बिजनेस एक दिन में कहां खड़ा होता है, बीस साल का बिजनेस और एक दिन का बिजनेस बराबर नहीं हो सकता, नितिन अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए दिन दिन भर भूखा रहकर इधर-उधर घूमता रुचि और नितिन स्ट्रगल करने लगे, बड़े भाई की सारी जिम्मेदारियां लगभग पूरी ही थी बच्चे अच्छा कमा रहे थे पर नितिन और रूचि के बच्चे अभी छोटे थे, अभी सारी जिम्मेदारियां बाकी थी, लंबा सफर था रिश्तेदारों ने भी पल्ला झाड़ लिया था, रुचि अपने पति का सपोर्ट बन कर खड़ी थी एक मजबूत बीम की तरह, अब वह अपनी दुनिया एक नए सिरे से शुरू कर रहे थे, जहां मदद करने वाला कोई रिश्तेदार ना खड़ा था। पर कहते हैं पर कहते हैं ना जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है।
हरिदयाल जी का इतनी लंबी सोच रखने के बावजूद भी आज घर में कलह का कारण बना हुआ था । अगर दोनों भाई के नाम से मकान और प्रॉपर्टी थी तो वह अपना हिस्सा लेकर अलग-अलग क्यों नहीं चैन की सांस लेते दोनों के मकान का एरिया भी सेम था। कहते हैं ना विनाश काले विपरीत बुद्धि, इस कहावत को समय चरितार्थ कर रहा था..।
क्या घर में रहने वालों से घर बनता है या घर में रह जाने से घर बनता है जब आपस प्रेम खत्म हो जाए तो अलग हो जाना ही समझदारी हैं रस्सी को इतना ना खींचिए कि वह तार तार होकर टूट जाए फिर जोड़े से भी ना जुड़े, अगर रिश्तो में खिंचाव हो रहा है उसे काट दीजिए कि काटने के बाद जुड़ने लायक हो,
जिन संस्कारो और प्यार की दुहाई देते हुए हरिदयाल जी मर गए , क्या इस लड़ाई झगड़े से वह जिंदा है किसी भी रिश्ते में अगर प्रेम और मानवता ना हो तो अलगाव जरूरी है।
प्रकृति का नियम है जब किसी चीज का समय पूरा हो जाता है तो वह नष्ट हो जाती है , और जैसे एक पौधे में अगर कई पौधे निकल आते हैं उनका पनपना नहीं हो पता (विकास नहीं हो पाता ) तो हम उस पौधे को अलग लगा देते हैं जिससे वह जल्दी जल्दी विकास हो, तो अगर रिश्तो में प्रेम खत्म हो गया है तो उसे अलग हो जाना चाहिए, थोड़ा समय और स्पेस चाहिए धीरे-धीरे वह प्रेम फिर विकसित होने लगता है।
और लड़ कटकर रहने से मन में द्वेष उत्पन्न होता है। समय के साथ ही अच्छी सोच रखते हुए अपने आप को अलग कर लेना चाहिए जिससे प्रेम भाव आपस में बना रहे।
— साधना सिंह स्वप्निल