गीतिका/ग़ज़ल

ये जिंदगी

कितने किरदार भी  निभाती है ये जिंदगी ।
शाह से गुलाम तक बना देती है ये जिंदगी।।

अजीज भी वक़्त पर दुश्मन बन जाते हैं ।
वक़्त की कीमत बता देती है ये जिंदगी ।।

कहते हैं कि पैसा  हाथ का मैल होता है  ।
पैसे का कमाल भी दिखा देती है जिंदगी।।

घटता बढता खर्च तकलीफ दे तो होता है ।
जमा खर्च की नसीहत देती है ये जिंदगी ।।

कहीं फाका मस्ती कहीं गुलछरे उढ़ाते हैं  ।
अमीरी गरीबी का तामजाम है ये जिंदगी।।

रिशतों की फेहरिस्त में तो बहुत से होते हैं ।
अपनों की पहचान करा देती है ये जिंदगी।।

आसमान छूने की तमन्ना तो रखते हैं सभी  ।
अच्छे अच्छों को धूल चटा देती है ये जिंदगी ।।

मुकदर का लिखा सबको मिलता है “नाचीज” ।
थाली में पुरसी रोटी भी छीन लेती है ये जिंदगी ।।

— मईनुदीन कोहरी “नाचीज बीकानेरी”

मईनुदीन कोहरी "नाचीज बीकानेरी"

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