पहाड़
हरे -भरे पेड़,
हरी- हरी नरम घास,
नाचते मोर-चहकती चिड़ियां,
फूलों पर मंडराते भंवरे,
हवा में इठलाती तितलियां
पहाड़ों को सुंदर/
बहुत सुंदर बनाते हैं ।
परंतु पहाड़ अपने सीने में
असीम दर्द छिपाए हुए हैं
पहाड़ हमें दिखते-
हंसते- मुस्कराते
दूर से…
हमने पहाड़ को बहुत दर्द दिया है
विकास के नाम पर !
हमने अपने स्वार्थ के लिए
कमजोर कर दिया पहाड़ को ।
वे टूट रहे हैं, तिल- तिल मर रहे हैं
अपने आंसू नहीं दिखा सकते किसी को-
पहाड़ है न इसलिए…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा