नेह बाग की मैं कोयलिया
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो,
मैं ही वो आंधी का झोंका साध नहीं तुम सकते हो।
नेह बाग की मैं कोयलिया प्रेम के गाती गीत,
प्रेम से मेरे प्राण भी हर लो उफ न करती मीत,
पिंजरे में मुझे करके कैद तुम गान नहीं सुन सकते हो,
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो।
आंगन की मैं ड्योढ़ी जिस पर दीप सजा करते,
वसुधा की मैं गति जिसपर दिन रात चला करते,
रोक के मेरी राह समय को रोक नहीं तुम सकते हो।
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो।
जीवन की राहों को प्रेम के अमिय से मैंने सींचा,
विष के शूलों को चुन चुन सृजित किया है बगीचा।
सांसों के धागों से बना गृह तोड़ नहीं तुम सकते हो,
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो।
— सीमा मिश्रा