कविता

नेह बाग की मैं कोयलिया

मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो,
मैं ही वो आंधी का झोंका साध नहीं तुम सकते हो।
नेह बाग की मैं कोयलिया प्रेम के गाती गीत,
प्रेम से मेरे प्राण भी हर लो उफ न करती मीत,
पिंजरे में मुझे करके कैद तुम गान नहीं सुन सकते हो,
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो।
आंगन की मैं ड्योढ़ी जिस पर दीप सजा करते,
वसुधा की मैं गति जिसपर दिन रात चला करते,
रोक के मेरी राह समय को रोक नहीं तुम सकते हो।
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो।
जीवन की राहों को प्रेम के अमिय से मैंने सींचा,
विष के शूलों को चुन चुन सृजित किया है बगीचा।
सांसों के धागों से बना गृह तोड़ नहीं तुम सकते हो,
मैं हूँ वह जलधार प्रिये जिसे बांध नहीं तुम सकते हो।
— सीमा मिश्रा

सीमा मिश्रा

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार, उ0प्रा0वि0-काजीखेड़ा,खजुहा,फतेहपुर उत्तर प्रदेश मै आपके लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका से जुड़कर अपने लेखन को सही दिशा चाहती हूँ। विद्यालय अवधि के बाद गीत,कविता, कहानी, गजल आदि रचनाओं पर कलम चलाती हूँ।