शोक नही मनाऊँगी
अब की बार वापस नहीं आऊंगी,
जितना दिया मुझे सब लौटाऊंगी।
कभी मेरा होकर भी नही हुआ है,
उसके जाने का शोक नही मनाऊँगी।
हर बार एक ही गलती करते रहना,
उसको नजर अंदाज अब नहीं होगा,
अपने आक्रोश को काबू में रख कर,
वक्त का दोबारा आगाज नहीं होगा।
गुजरे लम्हों में मैं रोक नहीं लगाऊंगी,
उसके जाने का शोक नही मनाऊँगी।
हार जीत का फैसला, प्यार नहीं होता,
इजहार किए बिना एतबार नहीं होता,
जिंदगी बुस्दिली बनकर जिंदा रहे तो,
ये बोझ किसी को स्वीकार नहीं होता।
भीतर के खौफ को घर नहीं लाऊंगी,
उसके जाने का शोक नही मनाऊँगी।
बहुत दिनों तक खुशामदी की तासीर
अब भी मेरे नस–नस में दौड़ लगाती है,
उसको खो देने की आशंका से मन में,
खुशियों की नीव कोलाहल मचाती है
सम्मान से समझौता कर नहीं पाऊंगी,
उसके जाने का शोक नही मनाऊँगी।
— प्रणाली श्रीवास्तव