गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

आज के सुख सेज से सहमत नहीं हैं हम।
मुफ्त में मिलती नियामत खुश नही है हम।

कुंद है अहसास दुखदायी वसीयत है-
घास उगती है कहाँ हकुमत नहीं हैं हम।।

पास मेरे क्या रहा गुमनाम जिंदगी।
हास औ परिहास में मतलब नहीं हैं हम।।

प्यास जिह्वा को लगी पर होठ सूखते।
क्यों न कर विश्वास की किशमत नहीं है हम।।

बोलते हैं लोग की कुछ भी नहीं जाया।
धर्म के आधार के नव खत नहीं हैं हम।।

शान से जीता यहाँ औ शान से रहता।
मान अरु सम्मान में गफलत नहीं हैं हम।।

देख ‘गौतम’ देख तो संसार की भाषा।
काम है भगवान का रहमत नहीं हैं हम।।

— महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ