ऊषा सुन्दरी
रजनी साथ रहे उडगन।
न अब रजनी न अब उडगन।।
बीती विभावरी छाई मुस्कान।
खग कुल की है मीठी तान।।
प्राची दिशि खड़ी सुन्दरी।
लाल बिंदी सोहै भाल।।
एक टक वह खड़ी हुई।
लालीमय जिसके गाल।।
लाल चूनर शोभित तन।
हाथ जिसके सजा है थाल।।
स्वागत करने अपने प्रिय का।
ऊषा सुन्दरी उत्सुक आज।।
- -अशर्फी लाल मिश्र