कविता

बसंत

प्रकृति की अनुपम छटा

मनोहर है नभ की घटा

ऋतु बसंत के स्वागत में

वसुधा का दरवार सजा

खेतों में है बस हरियाली

फुलों से लड़ी है यूँ डाली

किसान हुए प्रफुल्लित

धरा पे हुआ बसंत मोहित

फूलों पर तितली मंडराती

कोयल भी राग सुनाती

भ्रमर भी नव कलियों से

प्रीत की मनुहार करें

जैसे कोई एक पनहारी

दिल गागर में प्यार भरे

फूलों से महक चुरा पवन

चली है वो उपवन उपवन

आमों पे आया देखो बौर

बागों में पंछी करते शोर

पीली चुनरी ओढ़े धरती

प्रतिदिन खूब निखरती

लगता है सयानी हो गयी

बसंत की दिवानी हो गयी

प्रकृति करें बसंत आगमन

लगा जैसे हुआ नवसृजन

सजधज के आया मधुमास

गाँव गाँव में होता उल्लास

दुल्हन बनी धरा निहारती

हौले हौले अलकें सवारती

गुलाबी ठंड में खिली धूप

जिससे और निखरा रूप

धरा बसंत की जोड़ी अनूप

धरा रानी बसंत बना है भूप

— आरती शर्मा ( आरू )

आरती शर्मा (आरू)

मानिकपुर ( उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी एस सी