ग़ज़ल
अब ज़रूरत ही नहीं और शनासाई की ।
शह्र में चर्चा है जब आपकी रानाई की ।।1
सिर्फ़ मतलब के लिए लोग यहाँ मिलते हैं ।
कमी दिखने लगी रिश्तों में तवानाई की ।।2
कीमत ए इश्क़ पता चल गया उसको जानां !
उम्र भर जिसने तेरे कर्ज़ की भरपाई की ।।3
वो मुहब्बत के महल ढह चुके हैं देखो तो ।
ईंट रक्खी थी जहाँ नींव में दानाई की ।।4
मुझको तन्हाइयां लाती हैं बहुत रब के करीब ।
क्यूँ शिकायत मैं करूँ दुनिया से तन्हाई की ।।5
दरिया में डूबे वही लोग सुना है अक्सर ।
कह रहे थे जो ख़बर है मुझे गहराई की ।।6
इस अलग दौर की दुनिया से गिला शिकवा क्या ।
अब नहीं लेता है नोटिस कोई रुसवाई की ।।7
— नवीन मणि त्रिपाठी