लघुकथा

लघुकथा – एक कप चाय

अवधेश जी और हरिबाबू की दोस्ती पार्क में टहलने के दौरान हुई थी। दोनों नौकरी से रिटायर हो चुके थे। वे जब भी मिलते तो इधर-उधर की बातों के अलावे अपनी बहुओं की काफी तारीफ करते थे। बहुओं के मामले में एक-दूसरे की कहानी सुनकर दोनों को ईर्ष्या होती थी।
आज सुबह टहलकर लौटते हुए अवधेश जी को चाय पीने की इच्छा हुई। हरिबाबू ने भी हामी भर दी। दोनों ने पार्क के सामने वाली दूकान में एक-एक कप चाय पी। चायवाले को पैसे देने के समय दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे।
अवधेश जी असमर्थतता प्रकट करते हुए  बोले- “हरिभाई, घर से निकलने के समय बहू ने पचास रूपए सब्जी लाने के लिए दिए थे। सब्जी खरीदने के बाद बहू को हिसाब देना पड़ता है।”
हरिबाबू ने मजबूरी समझते हुए कहा- “अवधेश जी, मेरी बहू ने भी आज मुझे पैसे नहीं दिए। कहने लगी कि घूमने ही जा रहे हैं तो पैसों की क्या जरूरत है।”
दुकानदार दोनों की बातें सुनकर स्थिति को भांपते हुए बोला- “बाबा, कोई बात नहीं। आप दोनों यहां पार्क में टहलने आते हैं। आप दोनों यहां से लौटते हुए रोज एक कप चाय मेरी तरफ से पी लिया करें, मुझे बहुत ख़ुशी होगी। आप दोनों मेरे लिए पिता के समान हैं।”

— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

सरस्वती विहार, अम्बेडकर पथ, जगदेव पथ, पटना- 800014 मेल- [email protected]