आध्यात्मिक चेतना और राष्ट्रीय एकात्मता का पर्व मकर संक्रांति
शीत ऋतु के बीच जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसी दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। एक प्रकार से यह पर्व जीवन व सृष्टि में नवसंचार करता है। यह हिंदुओं का प्रमुख परिवर्तनकारी समय का पर्व है। यह पर्व पूरे भारत व पड़ोसी नेपाल में भी पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के नाम से मनाया जाता है जबकि कर्नाटक, केरल व अांध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्रद्धा, तर्पण आदि धार्मिक विधि विधान व कर्मों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान सौ गुना पुण्य बढ़कर प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इस दिन घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। इस दिन गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान का भी विशेष महत्व है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। इस संक्रांति से सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं। वैज्ञानिक मान्यता है कि इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी की शुरूआत होने लग जाती है। दिन बड़ा होने से प्रकाश का वातावरण अधिक होता है। अतः सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना गया है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होती हैं। इस अवसर पर सम्पूर्ण भारत में सूर्य देव की उपासना, आराधना एवं पूजन करने का विधि-विधान है।
इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व भी है। मान्यता है कि इस दिन भगवान भुवन भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। महाभारत काल में इसी दिन भीष्म पितामह ने अपनी देह का त्याग किया था। आज ही के दिन गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी और यही कारण है कि इस पर्व को बुराइयों और नकारात्मकता समाप्त करने का पर्व कहा जाता है।
सम्पूर्ण भारत में यह पर्व किसी न किसी रूप में मनाया जाता है तथा वर्तमान समय में यह पर्व भी आधुनिकता के रंग भी गया है। हरियाणा और पंजाब में यह पर्व लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मुक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिल चौली कहा जाता है। इस दिन पारम्परिक मक्के की रोटी व सरसों के साग का आनंद भी उठाया जाता है। उप्र में यह पर्व दान का पर्व है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर विशाल मेला लगता है। जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। इसी दिन से अच्छे कामों अर्थात मांगलिक कामों की शुरूआत हो जाती है। माघ मेले का प्रथम स्नान संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखिरी स्नान तक चलता हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में गोरखनाथ मंदिर में विशाल मेला लगता है जो खिचड़ी मेले के नाम से प्रसिद्ध है। बागेश्वर में बड़ा मेला लगता है। इस दिन लगभग सभी बड़ी नदियों के तट पर स्नान व दान आदि का बड़ा महत्व होता है। इस दिन स्नान करके तिल के मिष्ठान्न आदि को ब्राहमणों व पूज्य व्यक्तियों को दान किया जाता है। इस पर्व के अवसर पर गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं। उप्र में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिलाने का बड़ा महत्व है। खिचड़ी दान का भी सर्वाधिक महत्व हे।
बिहार में इस पर्व को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, गौ, स्वर्ण, ऊनी, वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्व है। महाराष्ट्र में भी यह पर्व बड़े धूमधाम व उमंग के साथ मनाया जाता है। यहां पर यह पर्व सुहागिनों का पर्व है। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़ एवं रोली और हल्दी बांटती है। वहीं बगाल में इस पर्व पर तिल दान करने की प्रथा हैं। यहां गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है।
तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है। असोम में मकर संक्रांति को माघ बिहु अथवा भोगाली बिहू के नाम से मनाया जाता है।
एक प्रकार से मकर सक्रांति का पर्व पूरे भारत में उत्साह, उमंग, उल्लास का पर्व है। यह समाज को सकारात्मक विचार प्रदान करने वाला पर्व है। वर्तमान समय में इस पर्व में भी आधुनिकता का रंग चढ़ गया है।
— मृत्युंजय दीक्षित