बसंत आ रहा…
हौले-हौले से आ रहा
धीरे-धीरे से छा रहा
कायनात का जर्रा- जर्रा
महक उठा- चहक उठा
बसंत आ रहा…
मौसम करवट बदल रहा
मंद-मंद खुशबू फैला रहा
खिल उठा सबका हृदय
नई उमंग- नई तरंग
बसंत आ रहा…
धरा सुंदर स्वर्ग बन रही
ऋतुओं की रानी आ रही
करो सब जन अभिवादन
यौवन नवल- मन चंचल
बसंत आ रहा…
कली -कली खिल रही
खगों की ध्वनि गूंज रही
मां शारदे को कोटिश: नमन
आता फाग- लाता दाग
बसंत आ रहा…
फूलों पे भंवरे मंडरा रहे
पराग शायद चुरा रहे
कुदरत बनी सुरम्य
मीठी छुअन-पीला परिधान
बसंत आ रहा…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा