आज़ाद हिंद फौज और उत्तराखंड
आजाद हिन्द फौज में उत्तराखण्ड का भी बड़ा योगदान था-
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द सरकार का गठन किया था. इस सरकार की स्थापना सिंगापुर में की गयी थी.
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देश को अंग्रेजों की गुलामी से निजात दिलाने के उद्देश्य से आजाद हिन्द फौज जिसे इन्डियन नेशनल आर्मी (INA) भी कहा जाता है, के नाम से एक सशस्त्र सेना संगठित की गई. जापान की सहायता से रासबिहारी बोस ने इसे टोकियो में स्थापित किया था.
बिलकुल शुरुआत में इस सेना में वे भारतीय सैनिक भारती किये गए जिन्हें जापान ने युद्धबंदी बनाया हुआ था. बाद के वर्षों में बर्मा और मलाया जैसे देशों में रहने वाले स्वयंसेवकों की भरती की गयी. इस घटना के एक साल बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जापान पहुँचे. जापान के आधिकारिक रेडियो से जून 1943 में उन्होंने कहा की सभी को मिलकर भारत के भीतर व बाहर से स्वतंत्रता के लिये स्वयं संघर्ष करना होगा क्योंकि अंग्रेजों से यह उम्मीद करना बिल्कुल अर्थहीन है कि वे स्वयं भारत की गद्दी छोड़ देंगे. उनके इस वक्तव्य से उत्साहित होकर 4 जुलाई 1943 को रासबिहारी बोस ने सुभाषचन्द्र बोस को आजाद हिन्द फौज की कमान सौंप दी. इस फौज में लगभग ढाई हजार सैनिक गढ़वाली थे.
आज़ाद हिंद फौज और उत्तराखंड का बेहद उल्लेखनीय सम्बन्ध रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सबसे विश्वसनीय सिपाही उत्तराखंड के ही थे. नेताजी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए भी इन्हीं पर भरोसा किया करते थे.
बताया जाता है कि जब नेताजी आज़ाद हिंद फौज को बड़े पैमाने पर संगठित कर रहे थे, गढ़वाल राइफल की दो बटालियनों ने इसका हिस्सा बनने का फैसला किया. शामिल होने वाले जवानों की संख्या ढाई हज़ार से अधिक बताई जाती है. यह आज़ाद हिन्द फ़ौज में समाहित हुई किसी भी भारतीय रेजीमेंट से सबसे बड़ी संख्या थी. इनमें से छः सौ से अधिक सैनिक युद्ध में शहीद हुए.
आजाद हिन्द फौज का प्रशिक्षण केंद्र सिंगापुर में अवस्थित था जिसकी बागडोर उत्तराखंड निवासी लेफ्टिनेंट कर्नल चंद सिंह नेगी के पास थी. उनके अलावा आजाद हिंद फौज में पर्सनल गार्ड बटालियन के कमांडर रहे मेजर देब सिंह दानू भी महत्वपूर्ण स्थान रखते थे. लेफ्टिनेंट कर्नल बुद्धि सिंह रावत सुभाष चंद्र बोस के पर्सनल एड्यूजेंट थे जबकि लेफ्टिनेंट कर्नल पितृशरण रतूड़ी फर्स्ट बटालियन के कमांडर. बनाया गया था. लेफ्टिनेंट कर्नल रतूड़ी को स्वयं नेताजी ने उनकी वीरता के लिए सरदार-ए-जंग की उपाधि से सम्मानित किया था. एक और योद्धा मेजर पद्म सिंह गुसांई आज़ाद हिंद फौज की थर्ड बटालियन के कमांडर थे.
सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज के गठन को भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ कहा जा सकता है. नेताजी का यह दृढ़ विश्वास था अन्य देशों की सशस्त्र सहायता बिना भारत भूमि से अंग्रेजी शासन नहीं हटाया जा सकता. यही उनकी सुनिश्चित कूटनीति थी. उत्तराखंड के वीरों ने उनका भरपूर साथ दिया था.